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॥ आधाकर्मनिरूपणम् ॥ लिंगेण उ णाऽभिग्गह अणभिग्गह वीसुऽभिग्गही चेव। जइ साग बितियभंगे पत्तेयबुहा य तित्थगरा॥१७४॥ एवं लिंगे भावण दसणणाणे य पढमभंगो उ। जइ-साग वीसुणाणी एवं चिय बितियभंगो वि॥१७५॥ दंसण-चरणे पढमो सावग जइणो य बितियभंगो उ। जइणो विसरिसदंसी दंसे य अभिग्गहे वोच्छं॥१७६॥ साग-जइ वीसऽभिग्गह पढमो बितिओ य भावणा चेवं। णाणेण विणिजेवं एत्तो चरणेण वोच्छामि॥१७७॥ जइणो वीसाऽभिग्गह पढमो बितिय णिण्ह-साग जइणो उ। एवं तु भावणासु वि वोच्छं दोण्हंतिमाणेत्तो॥१७८॥ जइणो सावग-णिण्हग पढमे बितिए य होंति भंगे तु। केवलणाणे तित्थंकरस्स जइ कप्पइ कयं तु॥१७९॥ पत्तेयबुद्ध-णिण्हग-उवासए केवली य आसजा। खयिगादिए य भावे पडुच्च भंगे उ जोएज्जा॥१८०॥ जत्थ उ तइओ भंगो तत्थ न कप्पं तु सेसगे भयणा।
तित्थंकर केवलिणो जह कप्पं णो ये सेसाणं॥१८१॥ दारं॥ दस ससिहागा सावग पवयणसाहम्मिया ण लिंगेणं। लिंगेण तु साहम्मी णो पवयण णिण्हगा सव्वे॥१६८॥
विसरिसदसणजुत्ता पवयणसाहम्मिगा ण दंसणतो। तित्थगरा पत्तेया णो पवयण दंससाहम्मी॥१६९॥ ____णाण-चरित्ता चेवं णायव्वा होंति पवयणेणं तु। पवयणतो साधम्मी णोऽभिग्गह सावगा जइणो॥१७०॥
साहम्मिऽभिग्गहेणं णो पवयण णिण्ह-तित्थ-पत्तेया। एवं पवयण-भावण एत्तो सेसाण वोच्छामि॥१७१॥
लिंगादीहि वि एवं एक्कक्केणं तु उवरिमा णेजा। जेऽणण्णे उवरिल्ला तं मोत्तुं सेसए एवं॥१७२॥ (टि०) १. भंगे वि जे२॥ २. उ जे१ को०॥ ३. सावग खं० जे२ ।। ४. तत्थ खं०॥ ५. कप्पे खं०॥ ६. व जे१ को०॥ ७. णेयव्वा जि० जि१॥