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(१)
(२) 'नामं- "ठवणा(९)
(c).
"दंसण - णाण
(३)
(१०)
॥ आधाकर्म्मनिरूपणम् ॥
दविए
-
खेत्ते काले य (६)
(११)
(१२)
(४)
२) पवयणे (७) लिंगे।
चरित्
अभिग्गहे
'भावणाओ य ॥ १६०॥
णामं -ठवणा - दविए गाहा । व्याख्या - साहम्मिओ दुवालसविहो, तं जहा - णामसाहम्मितो (१) ठवणासाहम्मिओ (२) एवं दव्व (३) खेत्त - (४) काल - (५) पवयण (६) लिंग - (७) दंसण - (८) णाण - (९) चरित्त - (१०) अभिग्गह - (११) भावणासाहम्मिओ त्ति (१२) एस समुदायत्थो ॥१६०॥ इदानीं भावार्थं प्रतिपादयन्नाह—
णामम्मि सरिणामो ठवणाए कट्ठकम्ममाईया |
दव्वम्मि जो उ भविओ साहम्मिसरीरगं चेव ॥१६१ ॥
णामम्मि गाहा । व्याख्या- 'णामम्मि' त्ति णामसाधम्मिओ सरिसणामो देवदत्तो देवदत्तस्स, ठवणाए कट्ठकम्ममादीया जहा वारत्तगरिसी, आदिसद्दाओ अक्षविन्यासादिपरिग्रहः, दव्वम्मि जो उ भविओ - एगभविगादि मूलगुण-उत्तरगुणणिव्वत्तिओ वा, साहम्मिसरीरगं चेव - ववगतभुतादि इति गाथार्थः॥१६१॥
३९
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खेत्ते समाणदेसी कालंमि य एक्ककालसंभूतो।
पवयण संघेकयरो लिंगे रयहरण-मुहपोत्ती ॥ १६२ ॥
खेत्ते समाणदेसी गाहा । व्याख्या- खेत्ते सोरट्ठो सोरट्ठस्स एवमादि, कालम्मि य एक्ककालसंभूतो पाउसजाओ पाउसजातस्स एवमादि, 'पवयण संघेगतरो' त्ति साधु साधुणी वा सावगो वा साविगा वा, 'लिंगे रयहरण मुहपोत्ति' त्ति लिंगे रयहरण - गोच्छ - पडिग्गहधारि त्ति गाथार्थः॥१६२॥ दंसण - णाण - चरणे तिग-पण-पण तिविहो होति उ चरिते ।
दव्वाई उ अभिग्गह अह भावण मो अणिच्चादी ॥ १६३॥ दारं ॥
दंसण-णाण० गाहा। व्याख्या- दंसणे खाइगदंसणी खाइगदंसणिस्स, एवं खओवसमिउवसमिएसु वि विभासा । अण्णे भणति - सम्मदिट्ठी सम्मदिट्ठीस्स, एवं मिच्छ- मिस्सेसु वि । णाणे आभिणिबोहियणाणी आभिणिबोहियणाणिस्स, एवं सुय - ओहि-मण- केवलेसु वि विभासा, चरणे सामाइयचरित्ती सामाइयचरित्तस्स, एवं सेसेसु वि छेदोवट्ठावणिय परिहारविसुद्ध - सुहुमसंपराय - अहक्खासु वि विभासा, 'तिग-पण - पण 'त्ति । 'तिविहो होइ उ चरित्ते' त्ति खाइगादिभेदेणं । 'दव्वादी तु अभिग्गह 'ति अभिग्गहे दव्वजुगादिसु सरिसो छट्ठादिखमणाभिग्गहेण वा, 'अह भावण मो अणिच्चादि' त्ति एगो साधू अणिच्चभावणं भावेति, अण्णो वि तहेव, एवं सेसासु वि विभास त्ति गाथार्थः ॥१६३॥
(टि०) १. उ खं० भां० जे४ ॥ २. ०णदिसि जि१ ॥ ३. परिग्गह० ला० ॥ ४. चरिते जे२ ॥ ५. ०ति च खं० ॥ ६. ०ग्गहे जे१ को० ॥ ७ ०वणे अणि० जे१ को० ॥ ८. खओवसमिको खओवसमिएसु वि विभासा जि० जि१ ॥ ९. केवलि जि० ॥