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॥ आधाकर्मनिरूपणम् ॥ सामत्थण रायसुए पितिवहण सहाय तह य तुण्हिक्का।
तिण्हं पि उ पडिसुणणा रण्णो सिटुंमि सा नत्थि॥१४३॥ सामत्थण रायसुए गाहा गतार्था, णवरं 'तह'त्ति तथेति॥१४३॥
भुंज ण भुंजे भुंजसु ततिओ तुसिणीओ भुंजए पढमो।
तिण्हं पि उ पडिसुणणा पडिसेहतस्स सा नत्थि॥१४४॥ भुंज ण भुंजे गाधा। व्याख्या- आहाकम्मभोइणा तेणेव कोइ णिमंतिओ जहा- “भुंज'। तत्थ एगो भुंजति। बितिओ पुण भणति- “ण भुंजे, भुंजसु तुमं"। ततिओ तुसिणीओ अच्छति। अण्णे(?ण्णो) ते वि णिवारेइ जहा- “अकप्पो एस साधूणं"ति, अयमनुक्तोऽपि गाथापश्चार्बोपन्यासाऽन्यथाऽनुपपत्त्यैव गम्यते। 'भुंजते पढमो'त्ति गतार्थमेव, “तिहं पि उ पडिसुणणा पडिसेहंतस्स सा णत्थि' त्ति प्रकटार्थम्। ___ अण्णे पढंति - ‘भुंज ण भुजे भुंजसु ततिओ तुसिणीओ वारति चउत्थो' पश्चाद्धं तदेव। अत्र ‘भुंज'त्ति कर्मणा आमंतणमेव, ण भुजे एगो, भुंजसु तुम बितिओ, सेसं जहा पुव्वमेवेति गाथार्थः॥१४४॥
आणेत- जगा कम्मुणा उ बिइयस्स वाइओ दोसो।
तइयस्स य माणसिओ तीहि विमुक्को चउत्थो उ॥१४५॥ आणेत गाहा। व्याख्या- आणेत- जगा आहाकम्मस्स कम्मुणा = किरियाए ते चेव बझंति। बितियस्स भणियलक्खणस्स वातिको दोसो ततियस्स तु माणसिओ दोसो त्ति वर्त्तते। तीहिं विमुक्को चउत्थो तु पडिसेधगो त्ति वुत्तं भवति॥१४५॥
पडिसेवण पडिसुणणा संवासऽणुमोयणा य चउरो वि।
पितिमारगरायसुए विभासियव्वा जइजणे य॥१४६॥ पडिसेवण गाहा कंठा॥१४६॥
संवासे जहा- चोरपल्ली विसमगिरिसंणिविट्ठा, तत्थ बहवे रायावराहकारिमादिणो परिवसंति। सा य अतीव अवगारिणि त्ति काउं रण्णा वेढिता। चोरा णट्ठा। माहण-वणियादयो अच्छंति “अचोराऽम्हे' त्ति। उवट्ठिता य रायाणं। रण्णा भणितं - एते दुह्रतरगा जे ममावकारीहिं समं परिवसंति। उढूढा । एवं चोरत्थाणीगा जे भुंजंति, जे तेहिं समं वसंति ते वि लग्गति। अमुमेवार्थमुपसंहरन्नाह(टि०) १. भुंजह ॥१॥ २. भोइग निमंतिओ जि१॥ ३. भुंजतो पढ० जि१॥ ४. पठंति ला०॥ ५. भुंजह जि०॥ ६. विसुद्धो भां० जे४॥ ७. जणेणं जे२॥ ८. रामोत्ति ला० जि१॥