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वरंगचरिउ 9. अगणिय सरधोरणि वरसंतउ, णं अयालि वरसागमु पत्तउ। (2/10) 10. सवरसंघु जुझं तह मारिउ, णं मुणि कम्मवूहु संघारिउ। (1/10) 11. णित्तंसुयजलु किम परियलियउ, णं अयालि गुरु पावसु सरियउ। (3/5) 12. णयणंसुय जलेहि तणु सित्तउ, णं विहिणा णिज्झरणु विहित्तउ। (3/2) 13. णं सुर अच्छरगणु इत्थ पत्ति, वरतण राणिय पिय पाय भत्ति। (3/6) 14. इय वयणु सुणिवि कोहे पलित्तु, णं केण हुयासु घएण सित्तु। (3/10) 15. किं किज्जइ उण्ण पयोहराई, कंचुय बंधणु णं वंधणाई। (4/1) 16. किं वर णेउर सद्दइ कुणंति, णं कामभिच्च हणु हणु भणंति। (4/1) 17. विण्णिवि अंसु जलुल्लिय णित्तइ, णं सयवत्त इउ सा सित्तइ। (4/7) 18. इय वयणइ णरेंदु याणंदिउ, णं वरसागमि तरुगणु णंदिउ। __णं दालिदिएण धणु लद्धउ, णं रसवाइ रसायणु सिद्धउ। ___णं वरहंसु सिवप्पुरि पत्तउ, णं हंसउ मण सरवरि रत्तउ। (4/10) 19. पिय मायरिहि महुच्छउ कीयउ, णं णवपुत्त जाउ धणु दीयउ। (4/10) 20. मायंग तुरय चंपाण जाण, विविहइ पासायइ णं विमाण। (4/18) उक्त रेखांकित पदों में उपमेय में उपमान की संभावना दिखाई गई है।
अनुप्रास अलंकार-वर्णसाम्य अनुप्रास है।' बार-बार वर्णों की आवृत्ति अनुप्रास है। यह आवृत्ति स्वरसाम्यमूलक तथा स्वर वैषम्यमूलक दोनों प्रकार से हो सकती है। इतना ही नहीं यह आवृत्ति शब्द के आदि, मध्य तथा अन्त में कहीं भी हो सकती है, यथा1. पडिहारें विण्णवियउ चंगउ पय पोसइ अरितिमिर पयंगउ।
(प वर्ण की आवृत्ति बार-बार आती है।) 2. सुजोव्वणु रुवसुवण्ण सुअंगु, सुवंधव गेहु मुणिंदह संगु। सुचीरु सुभोयणु देसु णरेंदु, दिणिंदु धणिंदु सुइंदु पडिंदु। (1/22)
___ (स और द वर्ण की आवृत्ति बार-बार आई है।) यमक अलंकार-सार्थक होने पर भी भिन्न अर्थ वाले स्वर व्यंजन समुदाय की क्रमशः आवृत्ति को यमक कहते हैं, यथा
णउ गिण्हहि जिणदिक्ख परिग्गहु, पई विणु हउं किं रहमि परिग्गहु। (4/21)
(परिग्रह शब्द में यमक अलंकार है, क्योंकि यहां पर परिग्रह के दो अर्थ हैं-एक तो जिनदीक्षा को ग्रहण के अर्थ में एवं दूसरा अर्थ धन-दौलत से है।) 1. मम्मट, काव्यप्रकाश, 9.2 (वर्णसाम्यनुप्रासः)