________________
145
वरंगचरिउ तृतीय सन्धि
इस प्रकार नृपति धर्मसेन अश्व और वरांग के बारे में जानकर, अन्य घोड़े को लेकर पीछे राजपुत्रों को भेजता है। राजपुत्र अनेक घोड़ों और हाथी पर सवार होकर जाते हैं। |खंडक ।।
वे नृप के वचनों को सुनकर जाते हैं। वे सवार होकर के पथ में प्राप्त प्राणी-समूह से कुमार के बारे में पूछ-पूछकर जाते हैं, किन्तु कुमार का कहीं भी पता नहीं चलता है।।छप्पय ।।
1. वरांग की खोज राज्य का संचालन कुछ ही चला पाया और पुनः कौन इसे चलायेगा। राजपुत्र के हरण से वहां मन में शल्य हो गई। चलते-चलते वे भयानक जंगल में पहुंचे, दसों दिशाओं में अवलोकन करते हुए प्रेक्षण किया, यहां-वहां सर्वत्र श्रेष्ठ घोड़ा और कुमार को देखा एवं अतिदुष्कर जंगल के बीच को भी नहीं छोड़ा अर्थात् वहां भी देखा, वहां भी कुमार वरांग नहीं दिखाई दिया। वे घोड़ा के उपकरणों को लेकर आये, जहाँ नृप बैठे हुए थे, वहां वे पहुंचे (लौटे)। ___ इस प्रकार एक उपकरण कुएं के अंदर प्राप्त किया एवं अंदर ही मृत अश्व को छोड़ा हुआ देखा। हम लोगों ने जहाँ-जहाँ जो देखा, उसको ग्रहण करके पुनः देखा, वह आपके समक्ष है। इन वचनों को सुनकर नरपति धर्मसेन शोक में लीन होते हैं एवं मूर्छित हो जाते हैं। पुनः किसी तरह से चेतन वरांग तुम प्राप्त हो, तुम्हारे बिना मेरी वेदना नष्ट नहीं होती है। बार-बार हाय पुत्र! हाय पुत्र! कहते हैं और शोक सहित करुण शब्द करते हैं। ___ हाय! इस भाग्य विधाता ने मुझको किस अवस्था में डाल दिया है। तुम भग्न हुए, यह पुत्र की क्या पद्धति (परम्परा) है। हाय पुत्र-पुत्र हे! गुण सुन्दर एवं जिनवर महिमा के रतन रूप इन्द्र हो। तुम तो पीड़ा को (शान्त करने के लिए) जलरूप गुणसागर हो। हे ओजस्वी सूर्य! तुम कहां गये, कहां गये।
घत्ता-तुम पुत्र रूप में मेरे सौभाग्य के खजाना एवं कुल के तिलक के समान हो। शत्रु रूपी हाथी के मद को नष्ट करने के लिए सिंह के समान तुम्हारे जैसा अन्य कौन युवराज होगा।
खंडक-हाय विधाता ने क्या किया? कलाओं से युक्त, गुण सुन्दर एवं मन और नयनों को आनंदित करने वाले मेरे पुत्र को छीन लिया।