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वरंगचरिउ
इत्तहि धम्मसेणु णिवइ हरिउ वरंगु मुणेप्पिणु'।
तहो पुट्ठिहि पेसिय रायसुया आणहु हरि गिण्हेविणु।। खंडयं- इय णिसुणेविणु वयणयं, णाणा हरि-करि जाणयं ।
चडिवि चडिवि पहि सत्थयं, तो विण पिक्खिउ कत्थयं ।। छ।।
केवि वाहुडिय केवि पुणु चल्लिय णिवसुयहरणें जह मणसल्लिय। जंत जंत ते अडविहि पत्ता
दहदिहि' पिक्खहि अवलोयंता। जाम ताम ततहि दिट्ठउ हयवरु
अडविहि मज्झि मुयउ अइदुहयरु। तहि णवि दिट्ठउ वरतणसारउ
कत्थ गयउ वररायकुमारउ । हरि उवयरणइ लेविणु आयइ
जहि णिउ अच्छइ तहि जि परायइ। देव देव णंदणु णवि दिट्ठउ
सयलह लोयह मज्झि गरिट्ठउ। इय उवयरणइक्क कूवंतरि
हरिवरु मुयउ दिनु अभंतरि। अम्हइ गिण्हिवि पुणु जोयंता
यंत यंत तुह पुरसंपत्ता। इय वयणइं सुणेवि णरसामिउ
सोय विलीणउ मुच्छायामि । कह व–कह व पुणु लद्धी चेयण तो विण णट्ठी वरतणु वेयण। हा हा पुत्त-पुत्त पभणंतउ
सोयाउरु कारुण्ण कुणंतउ। हा विहि किं अवत्थ महु पाडिय __ पइं भंजिय पुत्तह परिवाडिय। हा हा पुत्त-पुत्त गुणसुंदर
जिणवरमहिमा रयणपुरंदर। हा हा तोय-तोय गुणसायर
कहिगउ-कहिगउ तेय दिवायर। घत्ता- हा तणयरुव सोहग्ग णिहि, महु कुलितिलय समाणउ।
अरि-करि-हरिभंजण पई सरिसु को होसइ जुयराणउ। खंडयं- हा हा विहिणा किं कयं, तोय महारउ जं हयं ।
हरियउ कलगुणसुंदरो, महु मणणयणाणंदिरो।।१।।
पई विणु को हियवउ साहारइ पइं विणु सुण्हइ को रंजावइ पइ' विणु सुण्णउ महु घरपंगणु
सोय समुद्द पडतउ धारइ। पई विणु को भंजइ महु आवइ । पइं विणु सहु सुण्णउ णंदणगणु।
____ 1.A, K,N, मुणेपिणु 2. A, K,N, क्कत्थयं 3. A, K,N, किवि 4.N, दिह"
5. K, कथ्य A, कथ 6. A,K,N, आइय 7.A, सुच्छायामिउ 8.A,K,N, यउ 2. 1. N, पइ