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वरंगचरिउ
111 - है। छोटे और बड़े पुत्र क्रोध से कहते हैं- यह तो कुमारवरांग ने पूर्वार्जित तप का फल पाया है।
क्या सिंह गज को नष्ट नहीं करता है? क्या हाथी वटवृक्ष को नहीं तोड़ता है? अर्थात् यह कार्य होते हैं। परन्तु पद देने में प्रभुता नहीं होती है। पुण्य के प्रताप से ही प्रभु के गुणों का गुणगान प्राप्त होता है। इस प्रकार वचन कहकर वे मंदिर जाते हैं। कुमार वरांग की माता के लिए आंखों में आनंद झलकता है, लेकिन मृगसेना को शोक होता है। पुरवासी मिलकर गुणदेवी के साथ मंदिर में आते हैं। गुणदेवी में उत्साह उत्पन्न होता है।
___ गुणदेवी सभी के लिए वात्सल्य प्रदान करती है, लेकिन मृगसेना छलकपट युक्त वात्सल्य करती है, मानो विधाता ने कामदेव का पुत्र निर्मित किया हो। इस प्रकार नगरवासी प्रशंसा करके अपने घर को चले जाते हैं, मृगसेना वहां से जाती है, अपने निवास स्थान पर सोचना प्रारम्भ करती है कि अब क्या किया जाए? पुत्र-राग में धुत्त होकर कहती है-सुनो मैं राजा की श्रेष्ठ पत्नी हूँ, मेरा मान भंग हुआ है, जो तुम्हें युवराज पद नहीं दिया गया। इन बातों से सुषेण प्रज्वलित हो जाता है और क्रोध की अग्नि में जलता है, हे माता! मेरे आँखों के आंसू पोंछिए, शोक के वश कहता है यह अच्छा नहीं हुआ, मैं संग्राम (युद्ध) करके वरांग का संहार करूंगा, युवराज पद भी मैं ही धारण करूंगा। तब मंत्री कहता है यह कार्य नहीं कीजिए, तात (पिता) के द्वारा दिया हुआ तुम पद छीनोगे।
घत्ता-जिसकी देह से हरिवंश उज्ज्वल हुआ था, ऐरावत हाथी के सूंड के समान जिसकी भुजाएं हैं, ऐसा कुमार वरांग अजेय है।
19. सुबुद्धि मंत्री का कथन सुबुद्धि मंत्री कहता है-यदि तुम संग्राम (युद्ध) करते हो तो कौन जानता है कि विजय कौन प्राप्त करेगा, कर्मविपाक (कर्मफल) को कोई नहीं जानता है, अपने आपको सभी योद्धा मानते हैं। मंत्री वचनों से संबोधित करता है किन्तु मना करने पर सुषेण को क्रोध उत्पन्न हुआ। हे मंत्री! तुमने सुन्दर कहा है। इस प्रकार मंत्रणा का क्या औचित्य है? पुनः मंत्री सुबुद्धि के द्वारा कहा जाता हैअपने आपको गुप्त नहीं रख सकते हो, इस प्रकार वंचना (ठगना) करके क्या होता है, बिना अवसर के क्या सब कुछ प्राप्त करोगे। सुषेण कहता है-अवसर पाकर पीछे क्या करें, मंत्री कहता है- मैं कुमार वरांग की शक्ति को ठगूंगा। राजपुत्र (सुषेण) को वचनों से आश्वासन देकर, वह दुष्ट मंत्री अपने घर को गया।
इस प्रकार से कुमार वरांग सुख का अनुसरण करता है, अपने मन में जिनेन्द्रदेव के चरण कमल को धारण करता है। वह जो विधाता के द्वारा पुण्यफल प्रगट हुआ है, उसे हटाने की समर्थ किसकी है। वह दुष्ट मंत्री मन में छल धारण करके मिथ्यात्व करता है। राजा भी अपने मन में