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वरंगचरिउ किं पंचाणणु भंजइ गय घडु गयवरु किं भंजइ भूरुहवडु। पर दिण्णउ णवि होइ पहुत्तणु पुण्णहं लब्भइ पहुगुण कित्तणु। इय वयणहि गय णियमंदिर णिय जणणिहि कय णयणाणंदिर | गुणदेविहि उच्छाहु वि जायउ मयसेणइ सोउ संपायउ। सयलं ते उराइ मिल्लेविणु गुणदेविहि मंदिरे आवेविणु। सव्वहं गुणदेविहिं किउ वच्छलु मयसेणइ किउ मायावच्छलु । करिवि पसंसण गय णियभवणहो णं विहि णिम्मिय मग्गण मयणहो। मयसेणइ जाइवि किं किद्धउ णिय आवासि सोउ पारद्धउ। अक्खइ णिसुणि पुत्तरइ धुत्तिय हउं गरुयारिय णरवइ पत्तिय। माणभंगु महु केरउ जायउ जं तुह णउ दिण्णउ' जुयराउ। इय वयणइ सुसेणु पज्जलियउ कोह-हुयासणु माणसु जलियउ। माइ माइ णयणंसुय पुच्छहि सोयवसेण तुज्झ मा अच्छहि। संगरु करि वरंगु संहारमि जुवरायत्तु वि पउ हउं धारमि। भणइ मंतियउ कज्जु ण किज्जइ तायइ दिण्णउ किं पउ लिज्जइ। घत्ता- मा मसिकुंयउ देहि हरिवंसुज्जलु आसि हुउ। कुमरुवरंगु अजेउ सुरकरि करसमपयड भुउ।।१८||
19 अहवा जइ संगरु तुहु करइ को जाणइ जयसिरि को वरइ। कम्मह विवाउ णवि को मुणइ अप्पाणउ सुहडत्तणु गणइ। मंतिय वयणहि संवोहियउ । उप्पण्णउ कोहु णिरोहियउ। भो! मंतिय पई चंगउ भणिउ एवहि एहु' मंत्तत्तणु किं गणिउ। पुणु मंति- सुबुद्ध अक्खियउ अप्पाणउ गुज्झ ण रक्खियउ। एवहि वंचणु किं करि हवइ विणु अवसरि किं पावसु सवइ । अवसरु पाविवि करि किं पिच्छलु हउं वंचमि कुमरुवरंगवलु । वयणइ आसासिवि रायसुउ सो मंति दुट्ठ णियगेहि गउ। इत्तहि वरंगु सुहु अणुसरइ णियमणि जिणपयकमलइ धरई । जो विहिणा पयडिउ पुण्णफलु सो फेडिवि सक्कइ कवणु खलु। इत्तहि मिच्छत्त केर करइ सो दुट्ठ मंति मणि छलु धरइ।
4. K,भज्जइ 5. K,पहू 5. K,N, प्पुण्णह 6. K,मंदिरे 7. K, मंदिरे 8. K,णणाणंदिरे N, णणाणंदिर 9.
A, मंदिर 10..A, नरवइ K,N,ण्णरवइ 11.A, दिण्णउं 12.N, पुंच्छइ) 19. 1. A,K,N, में इस पद का अभाव है। 2. K, मंतिं 3. K, घरइ।