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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१४/७९ पुण्य वकील- जज साहब मेरे गवाह पर झूठे इल्जाम लगाये जा रहे हैं। मेरी
अदालत से गुजारिश है कि मेरे गवाह को इस तरह अपमानित
न किया जाये। जज - बिना बात सिद्ध किये कोई इल्जाम न लगाये जायें। धर्म वकील - जैसी आपकी इच्छा जज साहब ! (सुकृतकुमार से पूछते हुए)
तो आप पुण्य और पाप को अलग-अलग मानते हैं। सुकृतकुमार - जो सही है वही मानता हूँ। धर्म वकील - और आपने अपनी बात सिद्ध करने के लिए समयसार नाटक
का हवाला दिया। सुकृतकुमार - जी हाँ ! वो भी ऐसा ही मानते हैं। धर्म वकील - लगता है आपने बनारसीदास के समयसार नाटक के दो ही छन्द
पढ़े हैं और उन्हीं के आधार पर अदालत को गुमराह कर रहे हैं।
क्या आपने वे छन्द नहीं पढ़े ? जिसमें बनारसीदासजी ने कहाजैसे काहू चंडाली जुगल पुत्र जनैं तिनि,
एक दियो बामन कै एक घर राख्यौ है। बांमन कहायो तिनि मद्य मांस त्याग कीनों,
चाण्डाल कहायो तिनि मद्य मांस चाख्यो है। तैसे एक वेदनी करम के जुगल पुत्र
एक पाप एक पुन्न भिन्न-भिन्न भाख्यौ है। दुहूं माहिं दौर धूप दोऊ कर्म बंध रूप,
याः ग्यानवंत नहिं काहू अभिलाख्यौ है। और आपने पुण्य और पाप के कारणभेद, स्वरूपभेद, फलभेद, स्वादभेद बताये हैं, उसका भी समाधान करते हुए पण्डितजी ने आगे लिखा कि -
पाप बंध पुन्न बंध दुहूं में मुकति नाहिं,
__कटुक मधुर स्वाद पुग्गल को पेखिए।