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________________ ७५ चनारि चेव चंदा, चतारि य सूरिया लवणतोए ॥ बारस नक्खत्तसयं, गहाण तिन्नेत्र बावन्ना ॥ ११९ ।। दो चेव सय सहस्सा, सतवी खलु भवे सहसा य ॥ नवयसपा लबणजले, तारागं कोडिकोडीणं ।। १२० ॥ __ अर्थ-( लवणतोए ) के० लवण समुद्रने विषे (चतारि चंदा) के० चार चंद्र, (चत्तारि भूरिया) के० चार सूर्य, ( वारस नक्खतसयं ) के० एकसो वार नक्षत्र, अने ( गहाण तिन्नेव बाना) के० त्रण सो वावन ग्रह ( चेप) के० निश्चे होय छे. ॥ ११९ ॥ ___(य) के० वली ( दो चेव सयसहस्सा) के० बे ला व.( सतही सहरसा ) के० सहसठ हजार अने (नवय सया) के० नव सो ए. ली (ताराणं कोडिकोडीणं ) के० ताराओनी कोडाकोडी (लक्षणजले ) के० लवग समुद्रने विषे ( खलु ) के० निश्चे ( भवे ) के० होय छे. ॥ १२० ॥ ___हवे वैमानिक देवोनां विमाननी संख्या कहे छे. बत्तीस हावांसा, बारस अड चउ विमाण लक्खाई॥ पन्नास चत छ सहस्त, कमेण सोहम्माईसु ॥ १२१ ॥ दुसु सय चउ,दुसु सय तिग,मिगारसहियं सयं तिगेहिष्ठा। मज्झे सतत्तर सय, मुवरितिगे सय मुवरि पंच ॥१२२|| ___अर्थ-सौधम देवलोके (बत्तीस ) के० वत्रीश लाख, ईशान देवलोके ( अट्ठावीसा) के० अठाधीश लाख, सनत्कुमारे (बारस ) के० बार लाख, माहेंद्रे (अड) के० आठ लाख, ब्रह्मदेवलोके (चउ)
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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