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७४ अहिया) के० पंदर अर एटला ( जोयणाई ) के० योजननी (परिही.) के परिधि ते ( बाहिरए मंडले ) के. सूर्यना सवयी बाहेरना मंडले ( हुंति ) के० होय छे. ॥ ११७ ॥
हो दी। समुदने विशे ग्रह नक्षत्र तथा तारानी संख्या जाणवानो आय कहे छे. गहरिक्खतारसंवं, जत्येच्छसि नाउ मुदहि दीवे वा॥ तस्तसिहि एगलतिगो, गुग संखं होइ सवगं ।।११८॥
- अर्थ-(जत्थ) के० जे (उदहि) के समुदने विो (वा) के० अथवा (दीबे ) के० द्वीपने विषे ( गहरिक्वतारसंख) के० ग्रह नक्षत्र अने तारानी संख्याने (नाउं) के० जाणवाने (इच्छसि) के० इच्छा करे छे, तो (तस्ससि हि) के० ते द्वीप समुद्रना चंद्रनी संख्याने मांडीने ( एगससिगो) के० एक चंद्रना ग्रह नक्षत्र अने ताराना परिवार साथे ( गुण ) के० गुणाकार कर-के जेथी ( सव्वग्गं संख हाइ ) के० सर्व संख्या थाय छे.
दृष्टांत-जेम लवण समुद्रमा चार चंद्र छे, अने एक एक चंद्रने अट्ठाशी ग्रहनो परिवार होवाथी अठाशीने चार गुणा करतांत्रणसो बार ग्रह थाय. तेवीज रीते अट्ठावीश नक्षत्रने चार गुणा करीये तो एकसो बार नक्षत्र थाय, तथा तारानी संख्या कोडा कोडी जेटली जे प्रथम कंही छे तेने चार गुणी करीये त्यारे बे लाख कोडाकोडी, सडसर हजार कोडाकोडी अने नव सो कोडा कोडी थाय. एवी रीते सर्व हीप समुदने विषे जाणवू. ॥ ११८ ॥
एज वात बे गाथाथी कडे छे.