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________________ ७३ (इगलक्ख ) के० एक लाख योजननी मध्ये ( तिसयसहिमाउणो) के० त्रण सो साठ योजन ओर्छ अर्थात् ( ९९६४० ) योजनहोय छे. केमके एक सूर्य निषध पर्वा उपर एक सो एंशी योजन जंबुद्धीपमां आवे त्यारे वीजो सूर्य नीलवंत पर्वत उपर एक सो एंशी योजन जंबुद्धीपमां आने त्यारे बन्ने मलीने त्रण सो साठ योजन थाय.ते त्रणसो साठ योजन जंबुद्दीपना एक लाख योजनना आयाम विष्कभमांथी बाद करीये त्यारे (९९६४०)योजन रहे.एटलं अंदरना मंडले आंतरं जाणवू. त्यार पछी (साहियदु) के० सूर्य सूर्यने दरेक मांडले बे योजन वधारयु अने चंद्र चंद्रने ( सयरिचय ) के० दरेक मांडले सीत्तेर योजन वधार. जेथी (बहि ) के० सर्वथी बहारना मंडले ( लक्खो ) के० एक लाख, ( छसय ) के० छ सो अने (सहिहिओ) के० साउ अधिक एटला योजन आंतरंथाय.॥११५॥ तिन्नेव सयसहस्सा, पन्नरस हांति जोयण सहस्सा॥ एगुणनउया परिही, अभितर मंडले तेसिं ॥ ११६ ॥ ___ अर्थ-तिन्नेव य सयसहस्सा) के० त्रण लाख, (पन्नरस जोयण सहस्सा ) के० पंदर हजार, अने ( एगुणनउया ) के० नेव्याशी योजननी ( परिही ) के० परिधी ( तेर्सि ) के० स - यना ( अभितर मंडले ) के० अंदरना मांडलानी ( हवंति ) के० होय छे ॥ ११६ ॥ लक्ष तिगं अठारस.सहसा तिन्नि सय पंचदस अहिया।। परिही य जोयणाई, बाहिरए मंडले हुंति ॥ ११७ ।। ___ अर्थ-( लक्ख तिगं) के० त्रण लाख, ( अट्ठारस सहस्सा) के० अढार हजार, ( तिन्नि सय ) के० त्रण सो, अने (पंचदस
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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