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७६ के चार लाख (विवाण) के विमान छे. ए सर्वे (लकवाई ) के० ला वनी संख्याये करोने जाणवा. लांतके ( पन्नास ) के पचास हजार, शुक्र (चत्त ) के० चालीश हजार, सहस्रारे ( छ ) के छ हजार, ए स (सहस्स) के० हजारनी संख्याये जाणवा. ए (कमेण) के० अनुक्रमे करीने ( सोहम्माईसु ) के सौधर्मादिक देवलोकना विमाननी संख्या जागी ॥ १२१ ॥ तथा आना अने प्राणत ए (दुसु ) के० बे लोकने विषे ( सय चउ) के० चार सो विमान, तथा आरण अने अच्युत ए (दुमु) के० वे देवलोकने विष (सयतिग) के० ग सो विमान जाणवा. (निगेहिट्ठा) के नीचेना त्रण गोयके ( इगारसहियं ) के. गोयार सहित ( सयं ) के० सो अथात् एक सो अगियार विमान छे. (मज्झे ) के० वचला त्रण ग्रैवय । (. सत्तुत्तरसयं) के० एक सो सात विमान छे, अने ( उवरितिगे ) के० उपरना त्रण ग्रैश्य के ( सय ) के० एक सो विमान छे. वली ( उवीर ) के० उपरना पांच अनुत्तर श्मिाने (पंच) के० पांच विमान छे. ॥ १२२ ॥
हवे एर्प कहेला विमानोनी सर्व संख्या तथा विमानादिकनुं स्वरूप कहे छे. चुलसीइ लक्ख सत्ताण, वइसहस्सा विमाण तेवीस ॥ सब्बग्गमुट्ठालागंमि, इंदय बिसटि पयरेसु ॥ १२३ ॥
अर्थ-(सबगं ) के० सर्व संख्याये (चुलसीइ लक्ख ) के० चोरासी लाख, ( सत्ताणवइ सहस्सा) के सत्ताणु हजार, अने ( तेवीसं ) के० तेवोश उपर एटला (उठलोगमि ) के० उर्वलोकने विध (विमाण) के० विमानो छे. अने ते बार देवलोकना ( बिसहि