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________________ ६८ अर्थ - ( पढमार पंत्तिए) के० पहेली पंक्तिमां (बावत्तरि चंदा) के० बहोंतेर चंद्र अने ( बाबत्तरि सूरियाण) के० बहोंनेर सूर्य होय छे. (पुण) के० वली (चंदा चंदस्स) के० चंद्र चंद्रनुं ( अंतर ) के० अंतर ( लक्खदुगं) के० वे लाख योजननुं जाण ॥ १०७ ॥ जो जावई लक्खाइ, वित्थारो सागरो य दीवो वा ॥ तावइआओ य तहिं, चंदासूराण पतीओ ॥ १०८ ॥ अर्थ - ( जो ) के० जे ( सागरो ) के० समुद्र (वा) के० अथवा ( दीवो) के० द्वीप ( जावइ लक्खाई) के० जेटला लाख योजननो ( वित्थारो ) के० विस्तारवालो होय, ( तर्हि ) के० त्यां ( तावइआओ ) के० तेटली ( चंदासूराण) के० चंद्र सूर्यनी ( पंतीओ) के० पंक्तिओ जाणवी. एटले जेम बाह्य पुष्करार्द्ध आठ लाख योजननो छे तो तेमां लाख लाख योजनने अंतरे चंद्र सूर्यनी आठ पंक्ति छे. एम बोजा बहारना सर्व द्वीप समुद्रोने विषे जाणवु. ॥ १०८ ॥ हदे जंबुद्वीपने विषे चंद्रसूर्यनां मांडलां कहे छे. पन्नरस चूलसीइसयं, इह ससिरविमंडलाई तक्खितं ॥ जोयण पणसयद सहिय, भागा अडयाल इगसट्रा ||१०९ ॥ अर्थ - ( इह ) के ० आ जंबुद्वीपमां (ससि) के० चंद्रना ( पन्नरस ) पंदर मांडला छे, अने (रविमंडलाई ) के० सूर्यना मांडला चूलसीइसयं) के० एकसो चोरासी छे. तथा (तक्खितं ) के० ते मांडलं क्षेत्र ( जोयणपणसयदसहिय ) के० पांच सो दश
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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