________________
एकसी ने छोंतेर पंक्ति (मणुअलोयंमि) के० मनुष्य लोकमां (होइ ) के० होय छे. (छावट्ठी छावही य) के० बन्ने श्रेणिना छासठ छास चंद्र सूर्यमाना दरेक चंद्र सूर्यनी पाछल ( इक्किकया पंती ) के० अठाशी ग्रहोनी एक एक पंक्ति ( होइ ) के० होय छे. १०४ ते मेरुपरिअडता, पयाहिगा वत मंडला सव्वे ॥ अगवडियजोगे गं, चंदा सूरा गगणा य ॥ १०५ ॥ २
अथ - ( ते सच्चे ) के० ते सर्व (चंदा सूरा गह गणाय) के० चंद्र सूर्य अने ग्रहगो ( अणवद्वियजोगेणं) के० अनवस्थितयोगे करीने (मेरुपरिअडता) के० मेरु पर्वतनी समीपे ( वत्तमंडला ) के० गोल मंडले करीने ( पयाहिणा ) के० प्रदक्षिणा करे छे. ॥ १०५ ॥
चउपालसयं पढम-भूया पंतिए चंदसूरागं ॥ तेणं परितीओ, चउरुत्तरिया बुढी ॥ १०६ ॥
अर्थ - अढी द्वीपनी बहारना अर्द्धा पुष्करवर दीनमां ( पहमभूयापंती ) के० मालानी पेठे गोल रहेली प्रथम पंक्तिने विवे ( चंद्रसुराणं) के० एक बीजाने आंतरे रहेला बहोंतेर चंद्र तथा बहतर सूर्य मलीने (चउयाल सयं ) के० एक सो चुमालीश चंद्र सूर्य होय छे. ( तेणं) के० त्यार पछी क्षेत्रवृद्धिना कारणे असंख्याता द्वीप समुद्र मुधी (परिपंतीओ) के० दरेक पंक्तिमां (चउरुत्तरियार बुट्टीए) के० वे चंद्र अने वे सूर्य मली चार चारनी वृद्धि करवी ॥ १०६ ॥
बाव तरि चंदागं, बावत्तरि सूरियाण पंत्तिए ||
पढमाए अंतरं पुण, चंदा चंदस्म लक्खदुगं ॥ १०७॥ ৩