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________________ योजन अने ( भागा अडयाल इग सहा) के० एक योजनना एकसउ भाग करो तेवा अडतालोश भाग जाणवा. ॥ १०९॥ ___ हवे गगतोथी एनु परिमाण कहे छे. तिसि इगसाठा चउरो, इससस सत्त भइयस्स ॥ पगतीतं च दुजोषण, ससि रविगो मंडलंतर ॥११०॥ ___ अर्थ-एक योजनना (इगसहा ) के० एकसठ भाग करोये, तेवा (सि) के त्रीश भाग, अने (इग) के० एक एवा (इगसहस्स) के० एकसठीया भागना ( सत्त भइयस्स) के सात भाग करीये तेवा (चउरो) के० चार भाग, तथा (पणीसं जोयग) के० पांत्रीश योजन एटलं (ससि) के० चंद्रना मांडलानु अंतर छे. अने (दुनोयण) के० बे योजन- (रविणो) के सूर्यना मांडलानुं अंतर छे, ॥ ११०॥ __ एज वात आगलनी गाथावडे कहे छे. दो जोयणाणि सूरस्त, मडलाणि होति इयरस्स ॥ पणहीस जोपगीगस-हितीस चउ भाग सत्तहिया॥१११।। ___ अर्थ-(सूरस्स) के० सूयनां (मांडलाणि) के मांडला (दो जोयणाणि ) के० बेबे योजनने आंतरे ( हवंति) के० होय छे. अने (इयरस्स ) के० चंद्रनां मांडला मांडलानुं अंतर (पणतीस जोयण) के० पांत्रीश योजन, तथा (इगसही ) के० एक योजनना एकसठ भाग करीये तेवा (तीस) के० त्रीश भाग अने (सत्तहिया) के ते एकसठी एक भागना सात भाग करीये तेवा ( चउ भागा ) के चार भाग उपर एटलं अंतर चंद्रना मांडलान .जाणवू ॥ १११ ॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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