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________________ ४४ हने मनुष्य क्षेत्रमा चन्द्र विगेरे ज्योतिषि देवतानी गति तथा तेमना विमानने वहन करनारा देवतानी संख्या विगेरे कहे छ:ससि रवि गह नक्खता, ताराओ हुँति जहुत्तरं सिग्धा ॥ विवरीया उ महटिअ, विमानवहता कमेणेसिं ॥ ६१ ॥ ____ अर्थः-(ससि ) के० चन्द्र, ( रवि ) के सूर्य, (गह ) के० ग्रह, ( नरवत्ता ) के नक्षत्र अने ( ताराओ) के तारा तेमनी गति ( जहुत्तरं ) के० यथोतरपणाये करीने (सिग्धा ) के० उतावली ( हूंति ) के० होय छे. (उ) के० वली (महडिअ) के० महद्धिके करोने (विवरीया) के० पूर्व कहेला अनुक्रमथी विपरीत क्रम जाणवो. अने ( कमेणेसिं) के० अनुक्रमे करीने ( विमाणवहगा ) के० विमाने वहन करनारा देवता ए सर्व आगली गाथाओथी कहे छे. ॥ ६१॥ चंदेहिं खी सिग्घा, रविणो भवे उ गहा य सिग्घयरा॥ तत्तो नक्खत्ताओ, नक्खत्ते इंति ताराओ ॥ ६२ ॥ ११० अर्थः-(चंदेहिं ) के० चन्द्रथी (रवी ) के० सूर्य (सिग्या) के० उतावली गतिवालो छे. (उ) के० वली ( रविगो के० सूर्यथी (गहा य ) के० ग्रहो (सिग्धयरा ) के० उतावली गतिवाला ( भवे ) के० होय छे. ( तत्तो ) के० ग्रहोथी ( नक्वत्ताओ) के० नक्षत्रो, अने ( नक्वत्ते) के० नक्षत्रोथी ( ताराओ) के० तारा उतावली गतिवाला ( हूंति ) के० होय छे. ॥ ६२ ॥ अप्पट्ठीयाओ तारा, नक्खत्ता खलु तओ महढीया ॥ नक्खत्ते हुँति गहा, गहेहिं सूरा तओ चन्दा ॥ ६३ ॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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