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________________ पणयाल लक्ख जोयण, नरखितं तत्थिमे सया भमिरा ॥ नरखित्ताओ बहि पुण, अद्धपमाणा ठिया निचं ॥६०॥' ____ अर्थः-(पणयाल लक्ख जोयण ) के० पिस्तालीश लाख योजन- ( नरक्खित्तं ) के० मनुष्यक्षेत्र छे. ( तत्थ ) के० ते मनुष्य क्षेत्रमा ( इमे ) के० ए चर ज्योतिषि (सया) के निरंतर (भमिरा ) के फरे छे. (पुण) के० बली ( नरखित्ताओ बहि) के० मनुष्य क्षेत्रनी वाहेर ( अद्धपमाणा) के० जे चर ज्योतिषिना विमानोनुं प्रमाण कथु छे, तेथी अर्दा प्रमाणवाला ज्योतिषि विमानो (निचं ) के० निरंतर (ठिया ) के० स्थिर रह्या छे. अर्थात् चर ज्योतिषिना विमानोथी स्थिर ज्योतिषिना विमानोर्नु प्रमाण लंबाइ पहोलाइ अने उंचाइमां अधुं छे. ॥६० ॥ ____ अहिं पिस्तालोश लाख योजन- मनुष्य क्षेत्रनुं प्रमाण कहे छ के-जंबुद्रीपथी पूर्व दिशामां बे लाख योजननो लवण समुद्र, चारलाख योजननो धातकी खण्ड, आठ लाख योजननो कोलोदधि समुद्र, अने आठ लाख योजननो पुष्कराई. ए सर्वे मली बावीश लाख योजन थया. तेवाज बावीश लाख योजन पश्चिम दिशामां थाय. बन्ने मली चुमालीश लाख योजन थाय, तेनी साथे एक लाख योजननो जंबूदीप मेलवतां पिस्तालीस लाख योजन थाय, तेज प्रमाणे उत्तर दक्षिणमां गणतां पण पिस्तालीश लाख योजन थाय छे, ए पिस्तालीश लाख योजनना मनुष्य क्षेत्रने वींटीने सत्तरसो एकवीस योजन उंचो मानुषोत्तर पर्वत रह्यो छे. तेनी अंदरज मनुष्योना जन्म मरण थवाथी ते. मनुष्य क्षेत्र कहेवाय छे. ए मनुष्य क्षेत्रमा चर ज्योतिपिनां विमानो मेरु पर्वतने प्रदक्षिणा देतां निरंतर फरे छे. ॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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