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अर्थ:-सर्वथी ( अप्पढीयाओ) के० थोडी रूद्धिवाला (तारा) के० ताराओ छे, (तेओ) के० तेथी ( महड्डीया) के० वधारे रूद्धिवाला ( नक्खता ) के० नक्षत्रो (खलु ) के० निश्चे होय छे. अने ( नक्वत्ते ) के० नक्षत्रोथी (गहा ) के० ग्रहो वधारे रूद्धिवाला (हुति ) के० होय छे. वली (गहेहिं ) के० ग्रहोथी वधारे रूद्धिवाला (सूरा ) के० सूर्य होय छे, अने (तओ ) के० सूर्यथी वधारे रूद्धिवाला ( चंदा ) के० चन्द्र होय छे. तारा पांच वर्णना होय छे अने बीजा सर्वे ज्योतिषि देवो अग्नितप्त सुवर्ण समान छे. पांचे ज्योतिषि देवोने पोत पोतानी नामाकृति सरखां मुकुटमां चिन्ह होय छे. ॥ ६३ ॥ सोलस सोलस अड चउ, दो सुरसहस्सा पुरो
य दाहिणओ॥१ पच्छिम उत्तर सोहा, हत्थी वसहा हया कमसो॥६४ ॥
अर्थः-( सोलस सुर सहस्सा) के० सोल हजार देवो चन्द्र विमानने वहन करनारा अने (सोलस ) के० सोल हजार देवो सूर्यना विमानने वहन करनारा होय छे. वली ( अड) के० आठ हजार देवो ग्रहना विमानने वहन करनारा, ( चउ ) के० चार हजार देवो नक्षना विमानने वहन करनारा, तथा (दो ) के बे हजार देवो ताराना विमानने वहन करनारा होय छे. जो के चन्द्रादिकना विमानो स्वाभाविक रीते आकाशमां आलंबन रहित 'फर्या करे छे. परंतु आज्ञाकारी देवो भक्ति देखाडवाने माटे बिमाननी नीचे सिंहादिकनां रूप धारण करी रह्या छे. तेथी तेओ पण विमाननी साथे भ्रमण कर्या करे छे.