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तार रवि चंद रिक्खा, बुह सुक्का जीव मंगल सणिया | सग सय नय दस असिइ, चउ चउ कमसो तिया
चउसु ।। ५५ ।।
अर्थः – समभूतला पृथ्वीथी सातसो ने नेतुं योजन सुधीज ज्योतिषि विनानुं केवळ आकाश छे. ( सग सय नउय ) के० ते सातसो ने नेवुं योजन उपर (तार) के० तारा मंडल छे, ते उपर (दस) के० दश योजन उंचो (रवि) के० सूर्य छे, ते थकी (असिइ) के० एंशी योजन उपर (चंद) के० चंद्रमा छे, ते थकी ( चउ ) के० चार योजन उपर ( रिक्खा ) के० नक्षत्र छे, ते थकी ( चउ) के० चार योजन उंचो ( बुह ) के० बुध छे, ते थकी ( कमसो) के० अनुक्रमे (तिया) के० त्रण त्रण योजनने अंतरे ( शुक्का) के० शुक्र, (जीव ) के० बृहस्पति, (मंगल) के मंगल अने (सणिया) के० शनी ए ( चउसु ) के० चार ग्रह छे. ए प्रमाणे समभूतला पृथ्वीथी सातसो नेवुं योजन उपर एकसो दश योजनमां सर्व ज्योतिष चक्र चाले छे. समभूतला पृथ्वीथी नवसो योजन सर्वथी उंचो शनीश्वर छे. अहिं योजननुं प्रमाण प्रमाणांगुले कराने जाणवु. ॥ ५५ ॥
हवे मनुष्यक्षेत्रमां चर ज्योतिषी मेरुपर्वतथी केटला योजन दूर चाले ? तथा अलोकथी अंदर केटली अबाधाए ज्योतिषी रहे छे ? ते कहे छे:
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इकारस जोयण सय, इगवीसिक्कार साहिया कमसो ॥ मेरु अलोगावाहिं, जोइसचकं च ॥ ५६ ॥ १०५
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अर्थः- (इकारस जोयण सय) के० अगीयारसो योजन अने
ते उपर ( इगवीस ) के० एकवीस योजन. वली ( इक्कारस जोयण