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सय) के० अगीयारसो योजन अने ते उपर ( इक्कारसाहिया) के० अगीयार योजन अधिक. एम (कमसो) के अनुक्रमे करीने (मेरु अलो गाबाहिं) के० मेरुपर्वतथी अलोकने अबाधा करतुं (जोइसचकं ) के० ज्योतिषचक्र (चरइ) के० चाले छे. अने (हाइ) के० स्थिर रहे छे. अर्थात् बेरुपर्वतथी अगीयारसो ने एकवीस योजन दूर ज्योतिषचक्र मनुष्य क्षेत्रमा चाले छे अने लोकना छेडाथकी अगीयारसो ने अगीयार योजन चार दिशामा मांहेली कोरे लोकनी अबाधाए एटले अंतरे ज्योतिष चक्र स्थीर छे. तात्पय मनुष्यक्षेत्रमा चर ज्योतिषी अने बहारमा क्षेत्रमा स्थीर ज्योतिषी छे. ॥५६॥ अद्धकविठ्ठागारा, फलिहमया रम्न जोइसविमाणा 16 वंतरनयरेहितो, संखिज्जगुणा इमे हुंति ।। ५७ ॥ ____ अर्थः- ( अद्धकविद्यागारा) के० अर्द्धा कोठ फलना आकारखाला, ( फलिहमया.) के० स्फटिकरत्नमय अने ( रम्म ) के० रमणिक एवा ( जोइसविमाणा) के ज्योतिपि देवोना विमानो छे. अने ( इमे ) के० ए विमानो (वैतरनयहिंतो) के० पूर्वे कहेला व्यतरना नगरोथकी (संखिजगुणा) के० संख्यातगुणा मोटां (हूंति ) के० होय छे ॥ ५७ ॥ जोइसियविभागाई, सवाई हुँति फालिहयाई । दगफालिहमया पुण, लवणे जे जोइसविमाणा ॥५०॥'
अर्थः-( सवाई ) के पूर्व कहेला सर्वे (जोइसियविमाणाई) के० ज्योतिषि विमानो (फालिहमयाई) के० स्फटिकरत्न मय (हुति ) के० छे. पुण के० ( वली लवणे ) के० लवणसमुद्रने विषे (जे जोइसविमाणा) के० जे ज्योतिषिना विमानो छे ते सर्वे