SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समभूतलाओ अहिं, दसूण जोयणसएहिं आरम्भ ॥ उवरि दसूतर जोयण-सयंमि चिठंति जोइसिया ॥५३॥ १ अर्थः-मेरूपवतना मध्य भागमा जे आठ रुचकप्रदेश छे, ते समभूतला कहेवाय. ते (समभूतलाओ) के० समभूतला थकी ( दसूण) के० दश योजन ओछा एवा ( अट्टहीं जोयणसएहीं) के० आठसो योजन अर्थात् सातसो ने नेवु योजन, त्यांची ( आरभ्म ) के० आरंभीने (अरि ) के० उपरना भागने विषे (दसूत्तर जोयणसयंमि) के० एकसो दश योजनमांहे (जोइसिया) के० ज्योतिषी देवो (चिठंति ) के० रहे छे ॥ ५३॥ हवे एकसो दश योजनमा ज्योतिषि देवो केवी हीत रह्या छ ? ते कहे छे:तत्थ रखी दसजोयण, असीइ तदुवरि ससी य रिक्खेसु॥ अह भरणि साइ उवरि, बहि मूलो भिंतरे अभिई ॥५४॥१०१ ___ अर्थः- (तत्य ) के० त्यां एटले एकसो दश योजनमां ( दस जोयण) के० प्रथम दश योजननी उपर ( रवी) के० सूर्य छे. (तदुवरि ) के० तेना उपर ( असीइ) के० एसी योजन ( ससी) के० चंद्रमा छे. (य) के० वली ते थकी चार योजन उंचा (रिक्खेसु) के० अठ्ठावीश नक्षत्रो छे तेमां (भरणि) के० भरणी नक्षत्र सर्व नक्षत्रोथी ( अह ) के नीचे चाले छे, तथा (साइ) के० स्वाति नक्षत्र सर्व नक्षत्रोथी ( उवहि ) के० उपर चाले छे. वली ( मूलो ) के० मूल नक्षत्र सर्व नक्षत्रोथी ( बहि ) के० बहारना मंडले चाले छे अने ( अभिइ ) के० अभिजित् नक्षत्र सर्व नक्षत्रोनी (भिंतरे ) के० अंदर चाले छे. ॥५४॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy