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________________ बाहिं वट्टा अंतो, चउरंस अहो अकण्णियायारा ॥ भवणवईगं तह वंतराण, इंद भवणाओ नायव्वा ॥३५॥ अर्थः-व्यंतरदेवोनां घरो (बाहिं ) के० बाहेरना भागे ( वट्टा) के० वृत्त एटले गोल आकारवाला छे, अने (ो ) के० मांहेला भागे ( चउरंस ) के० चोखूणा छे. (अ) के० वली ( अहो ) के० अधोभागे एटले नीचेना भागे (कण्णियायारा) के० कमलनी कर्णिकाना आकार छे. ए उपर कहेली आकृतीवाला (भवणवईणं ) के० भवनपतिनां ( तह) के० तथा (वंतराण) के० व्यंतरदेखोना ( ईदभवणाओ ) के० इन्द्रना भुवनो (नायबा) के० जाणवा. ॥ ३५॥ तहिं देवा वंतरिया, वरतरुणीगीयवाइयरवेणं ॥ ५५० निचं सुहिया पमुइया, गयंपि कालं न यागंति ॥३६॥५ ___अर्थः- (तहिं ) के० ते भुवनोमां (देवा तरिया) के० व्यतरिक देवताओ (वरतरुणी) के० अति सुन्दर देवांगनाओना (गीयवाइयर वेणं) के० मधुर गीत अने बत्रीशबद्ध नाटक सहित मृदंगादिक वाजिंत्रना शब्दथी (निच्चं) के० नित्य (सुहिया) के० सुखी छता अने (पमुइया) के० हर्षवंत छता ( गयंपि कालं) के० गयेला कालने (न याणंति ) के० नथी जाणता ॥ ३५ ॥ हवे ते व्यतर देवोनां नगरोनुं प्रमाण तथा निकायनां नाम कहे छे:ते जंबुदीव भारह-विदेह सम गुरु जहन्न मज्झिमगा। वंतर पुण अठविहा, पिसाय भूया तहा जक्खा ॥३॥ पर
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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