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________________ चासठि सहि असुरे, छच्चसहस्सा धरइंण माइणं ।। सामागिया इमेसि, चउग्गुणा आय रक्खाय ॥ ३३॥८ ___ अर्थः-असुरे के असुरकुमार निकायना बे इन्द्र छे तेमां पहेला चमरेन्द्रने (चउसहि)के० चोसठ हजार अने बलिद्रने(सहि)के० साठ हजार तथा (घरणमाई) के० धरगेन्द्र विगेरे अढारहजार इन्द्रने (छच्च सहस्साई) के० छ हजार (सामाणिया) के० सामानिक देवता छे, (य) के० अने ( इसिं) के० ए सामानिक देवोथी (चउग्गुणा ) के० चार गुणा (आयरक्खा ) के० आत्मरक्षक देवो होय छे. ॥ ३३ ॥ एम भुवनपतिनी दशे निकायनां नाम, इन्द्र, भुवनसंख्या, चिन्ह, वर्ण, वस्त्र, सामानिक देव अने आत्मरक्षक विगेरेनी वक्तव्यता कही. हने व्यंतरदेवोनी वक्तव्यता कहेता थका प्रथम व्यंतर देवोनां भुवन कहे छ:रयणाए पढम जोयण-सहसे हिवरि सय सय विहूणे।। वंतरियाणं रम्मा, भोमा नगरा असंखिज्जा ॥ ३४ ॥५१ ___ अर्थः-( रयणाए ) के० रत्नप्रभा पृथ्वीना पिंडना (पढम) के० प्रथम उपरना जोयण ( सहसे ) के० जे एक हजार योजन मुक्या छे, तेमांथी ( हिद्वरि सय सय विहूणे ) के० हेठे अने उपर सो सो योजन मूकीए. वचमां आठसो योजन रह्या, तेमां (वंतरियाणं) के० व्यंतर देवोनां ( भोमा) के० पृथ्वोकाय संबंधी (रम्मा) के० रमणिक (असंखिज्जा) के० असंख्याता (नगरा) के० नगरो छे. ॥ ३४ ॥ हवे व्यंतर देवोना घरना आकार कहे छ:
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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