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________________ २२८ अर्थ - ( नरयतिरियागया ) के० नरक अने तिर्येच गतिथी नीकलीने मनुष्यगति पामेला ( दस ) के० दस जीवो उत्कृष्टथी एक समये मोक्षे जाय, ( नरदेव ) के० मनुष्य मरीने फरी मनुष्य थयेला अथवा देवगतिथी चवीने मनुष्य थयेला जीवो (बीस असयं ) के० बीस अने एक सो आठ जीवो मोक्षे जाय. अर्थात् मनुष्य मरीने मनुष्य थयेला वीस, अने देवगतिथी चवीने मनुष्य येला एक सो आठ जीवो मोक्षे जाय छे. वली ( रयणा सक्करवायाओ ) के० रत्नप्रभा शर्कराप्रभा अने वालुकाप्रभा एत्रण नरकथी नीकलीने मनुष्य थयेला जीवो उत्कृष्टथी एक समये (दस) के० दश मोक्षे जाय, तथा ( पंकभूदगओ ) के० पंकप्रभा पृथ्वीकाय अने अकायथी नीकलीने मनुष्य थयेला जीवो ( चउ ) के० चार मोक्ष जाय छे. ॥ ४०६ ॥ छब व गस्सइ दस तिरि तिरित्थि दस मणुय वीस नारीओ असुराइ वंतरा दस, पण तद्देवी उ पत्तेयं ॥ ४०७ ॥ जोइ दस देवि वीसं, विमाणियद्वस्य वीस देवीओ ॥ ० अर्थ - ( वणस्सइ) के वनस्पतिकायथकी मनुष्य थयेला (छच्च) के० छ, ( तिरि ) के० पंचेंद्रिय तिर्थचथी मनुष्य थयेला (दस) के० दश, ( तिरित्थि ) के० तिर्यचनी खोथी मनुष्य गति पामेला जीवो पण दश मोक्ष जाय. ( मणुय दस ) के० मनुष्यगतिथी फरी मनुष्य थयेला दस के० दश अने ( नारीओ ) के ० मनुष्यनी स्त्रीथी फरी मनुष्य गति पामेला ( वीस ) के० वीश जीवो मोक्षे जाय छे. वली (असुराइ ) के० असुरादि दर्शनिकायथी अने (वंतरा) के व्यंतरनी सर्व जातिथी मनुष्य थयेला जीवा (दस) के० दश मोक्षे जाय, तेमज ( तद्देवीउ ) के० असुरादिक
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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