SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२९ दश निकायनी अने व्यंतरदेवोनी देवीओथी मनुष्य थयेला (पत्तेयं) के० दरेक (पण ) के० पांच पांच मोक्षे जाय. ॥ ४०७ ॥ (जोइ) के० ज्योतषी देवोथी मनुष्य थयेला जीवो ( दस ) के० दश माक्षे जाय, अने ( देवि ) के० ज्योतषिनी देवीओथी मनुष्य थयेला जीवो ( वीसं ) के वीश मोक्षे जाय. वली (वेमाणियट्ठसय) के० वैमानिक देवथकी मनुष्य थयेला जीवो एकसो आठ तथा (देवी ओ) के० वैमानिक देवीथी मनुष्य थयेला जीवो (वीस) के० वीश मोक्षे जाय ॥ ___हवे वेदआश्री सिद्धि कहे छे, तथा सिद्धिगतिनो उपपात विरहाकाल कहे छे. तह पुव्वेएहितो, पुरिसो होऊण अट्ठसयं ॥ ४०८ ॥ सेसट्ठभंगएसु, दस दस सिझंति समएणं ॥ विरहो छपास गुरुओ,लहु समओचवणमिह नत्थिा॥४०९॥ अर्थ-( तह ) के० तथा (पुव्वेएहिती ) के० पुरुषयी फरी ( पुरिसो) के० पुरुष ( होउण) के० थया होय तो एक समये उत्कृष्टथी ( अठसयं) के० एक सो आठ जीवो मोक्षे जाय. तात्पर्य ए छे जे-पुरुषवेदवालो देव मनुष्य अथवा तिर्यचथी नीकलेलो कोई जीव पुरुष थाय कोई स्त्री थाय अने कोइ नपुंसक पण थाय. एवीज रीते स्त्री वेदवाली देवी विगेरेथी नीकलेलो कोइ जीव स्त्री थाय कोई पुरुष थाय अने कोइ नपुंसक पण थाय. एमन नपुंसक वेदवाला नारकी विगेरेथी निकलेलो कोइ जीव नपुंसक थाय कोइ स्त्री थाय अने कोइ पुरुष पण थाय. एम ए नव भांगा. मांथी पहेला भांगावाला एटले पुरुष वेदथी पुरुषदेदे थयेला मनुष्यो
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy