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________________ २२७ - अर्थ-(गुरु ) के० उत्कृष्ट अवगाहनाथी एटले पांचसो धनुष प्रमाण शरीरवाला अने (लहु ) के० जयन्य अवगाहनाथी एटले बे हाथ प्रमाण शरीरबाला, तथा (मझिम) के० मध्यम आगाहनाथी एटले बे हाथथी उपर अने पांचसो धनुष्यथी ओछा शरीर प्रमाणवाला उत्कृष्टथी (दो चउ अट्ठसयं) के० चार अने एक सो आठ मोक्षने विवे जाय. वली (उट्ठहो तिरीयलोए) के • उर्द्धलोके अयोलोके अने तिर्छालोके (चउ बावीसट्ठसयं) के० चार बावीस अने एक सो आठ अनुक्रमे उत्कृष्टथी मोक्ष जाय. अहिं उर्द्धलोक मेरुचूलिका ते नदनवन जाणवु. अधोलोक ते अयोग्राम विगेरे जाणवा अने तिच्छौँ लोक प्रसिद्ध छे. वली (समुंद्दे ) के० समुदमां (दु के० बे तथा ( सेसजले ) के० गंगादिक नदीना तथा द्रहनां जल विगेरेमा ( तिन्नि) के० त्रण उत्कृष्टथी मोक्षे जाय छे. ॥ ४०४॥ अधोग्राम क्या छ ? ते कहे छे. जोयणसयदसगंते, समधरणीए अहे अहोगामा ॥ बायालीससहस्सेहिं, गंतु मेरुस्स पच्छिमओ ॥४०५॥ अर्थ-( मेरुस्स पच्छिमओ) के० मेरुपर्वतनी पश्चिम दिशा तरफ (बायालीससहस्सेहिं गंतु) के० बैंतालीस हजार योजन जइये त्यारे ( समधरणीए अहे ) के० समभूतला पृथ्वीथी नीचे (जोयणसयदसगते ) के० एक हजार योजनने आंतरे ते ( अहोगामा ) के० अधोग्राम छे. ॥ ४५ ॥ हवे चारे गतिमाहेथी आवेला केला केटला जीवो मोक्ष जाय ते कहे छे. नरयतिरिया गया दस, नरदेव गईओ वीस अट्ठसयं ॥ दस रयणा सक्कर वा-लुयाओ चउ पंक भूदगओ॥४०६॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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