SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२६ हवे मनुष्य मरीने क्यां जाय ? ते आगति द्वार कहे है. संख नरा चउसु गईसु, जंति पंचसुवि पढमसंघयणे॥ इगदुति जा अट्ठसयं, इगतपए जति ते सिद्धिं ॥४०२॥ ____ अर्थ-संख) के• संख्याता आयुष्यवाला (नरा) के० मनुष्य ते (चउसु गईसु) के० चार गतिमां अंति) के० जाय छे. तेमां जे मनुष्य (पढमसंवयणे ) के० पहेला संवयणवाला होय ते (पंचमुवि) के मोक्ष सहित पांचे गतिने विषे पण जाय छे. मोक्षमा केटला जाय ? ते कहे छे. (ते) के० ते मनुष्य ( इगसमए )के एक समयमां जयन्यथी ( इगदुति ) के० एक बे त्रण अने उत्कृष्टथी (जाअट्ठसयं)के० यावत् एक सो आठ सुधी ( सिद्धिं )के० मोक्षप्रत्ये (जंति ) के०जाय छे. ॥ ४०२ ॥ हवे त्रण बेदआश्री सिद्धिगति कहे छे. वीसित्थि दस नपुंसग, पुरिसट्ठसयं तु एगसमएणं ॥ सिज्झइ गिहि अन्न सलिंग,चउदस अट्ठाहिय सयं च।४०३। ____ अर्थ-(इत्थि ) के० स्त्रीवेदे उत्कृष्टथी (वीस) के० वीस मोक्षे जाय. (नपुंसग ) के० नपुंसकवेदे (दस) के० दश मक्षि जाय. (तु) के० अने (पुरिस) के० पुरुषवेदे उत्कृष्थी (एगसमएणं) के० एक समये (अट्ठसयं ) के० एकसो आठ (सिज्झइ) के० मोक्षे जाय. वली (गिहि ) के० गृहस्थ लिंगे (चउ ) के० चार, (अन्न) के. तापसादिकलिंगे (दस) के० दश, (च) के०. अने (सलिंग ) के साधुलिंगे (अट्ठाहिय सयं के एकसो आठ मोक्षजाय छे.॥४०३॥ गुरुलहुमज्झिम दोचउ-अट्ठसयं उगृहो तिरियलोए । चउबावीसकृपयं, दुसमुद्दे तिनि सेसजले ॥ ४०४ ॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy