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२१७ अर्थ-(निरउवट्टा ) के० नरकथकी निकलेला जोवो ( गप्भय ) के० गर्भज (पजत्त ) के० पर्याप्ता तथा ( संखाउ ) के० संख्याता आयुष्यवाला थाय. ( हमे ( एएसिं) के० ए साते नरकथी निकलेला जीवोने (लद्धि ) के० केवी केवी लब्धी एटले परी प्राप्त थाय ? ते कहे छे. पहेली नरकपृथ्वोथो निकलेलो जीव ( चक्कि ) के० चक्रवति थाय, बोजी पृथ्वी सुधीनो निकलेलो जीव ( हरिजुअल ) के. वासुदेव तथा बलदेव थाय. त्रीजी नरक पृथ्वीसुधीनो निकलेलो जीव (अरिहा) के अरिहंत थाय, चाथी नरक पृथ्वी सुधीनो निकलेलो जीक ( जिण ) के० सामान्य केवली थाय. पांचमी नरक पृथ्वी सुधीनो निकलेलो जीव (जइ) के० सर्व विरति साधु होय, छट्ठी नरक पृथ्वी सुधीनो निकलेलो जीव (दिसि ) के० देशविरति श्रावक होय अने सातमी नरक पृथ्वोथी निकलेलो जीव ( सम्म ) के० सम्यक्त्वधारी होय. ए ( पुहविकमा ) के० नरक पृथ्वीनी अनुक्रमे लब्धी कही. ॥३८२॥
हवे नारका जीवो अवधिज्ञानथा केटलं क्षेत्र जोइशके ? ते कहे छे. रयणाए ओहि गाउ अ, चत्तारि अद्भुट्ठ गुरु लहु कमेण॥ पइपुढवि गाउयद्धं, हायइ जा सत्तमि इगद्धं ॥३८३॥3 ___ अर्थ-( रयणाए ) के० रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे नारकी जीवोने ( ओहि ) के० अवधिज्ञान ( गाउअ चत्तारि) के० चार गाउनु होय छे ते गुरु के० उत्कृष्ट जाणवू. अने (अधुठ) के० साडात्रण गाउनु अवधिज्ञान ( लघु ) के० जघन्यथी होय छे. ए ( कमेण ) के० अनुक्रमे जाणवू. त्यार पछी (पइपुढवि) के० दरेक पृथ्वीए ( गाउयद्धं हायइ ) के० उत्कृष्टमांथा अने जघन्यमांथी