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________________ (नील) के० नील लेश्या एकज होय छे. (धूमाए) के० धूमप्रभामां (नीलकिला) के० नील अने कृष्ण लेश्या होय छे. तेमां जे जोवोर्नु पल्योपमना असंख्यातमा भागे अधिक दश पल्योपमर्नु उत्कृष्ट आयुष्य होय तेमने नील लेश्या अने एथी वधारे आयुष्यवालाने कृष्ण लेश्या होय छे. अने (दुसु ) के० छठी अने सातमी नरकने विषे (किण्हा ) के० कृष्णलेश्या छे. तेमां एटलं विशेष के के-प्रथमनी कृष्णलेश्या करता छेल्ली बे नारकीनी कृष्ण लेश्या विशेषे कृष्ण लेश्य होय छे. (लेस्साओ हुति ) के० साते नरकमां लेश्याओ होय छे ते कही. ॥ ३८०.॥ हो उपर कहेली नारकीनी लेश्या वर्णरूप छे ? अथवा भाव रुप छे ? ते मूत्रकार कहे छे. सुरनारयाण ताओ, दवलेस्सा अवट्ठिया भणिया ॥ भावपरावत्तीए, पुण एसि हुंति छल्लेस्सा ॥ ३८१ ॥ ___ अर्थ-(सुरनारयाण ) के० देवता तथा नारकीने (ताओ) के० ते कहेली (दवलेस्सा) के० द्रव्यलेश्यो (अवठिया) के क्षेत्रसंबंधी (भणिया ) के० कही छे. कांइ वर्णरूप न जाणवी. (पुण) के० वली द्रव्यक्षेत्रकालादिथी तेवी तेवी सामग्री पामीने ( भावपरावत्तीए) के० परिणामना विपर्यास एटले फेरफारे करीने (एसिं) के० ए देवता तथा नारकीने ( छल्लेस्सा ) के० छलेश्या ( इंति) के. होय छे. ॥ ३८१॥ हवे नरकथकी निकलेला जीवो कइ गतिमां जाय ? ते कहे छे. निरउवट्टा गम्भय, पजत्तसंखाउ लद्धि एएसि ॥ २५ चक्कि हरिजुअल अंरिहा, जिण जइ दिसि सम्म पुहविकमा ॥ ३८२ ॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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