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________________ 3१५ २१८ अझै अझै माउ ओर्छ करवू, जेथी (जासत्तमि ) के० यावत् सातमी नरकने विषे ( इगद्धं ) के० उत्कृष्टथी एक गाउ अने जघन्यथी अझै गाउ अवधिज्ञान होय छे. ॥ ३८३ ॥ ए नरकद्वार - पूर्ण थयु.॥ हवे मनुष्यद्वार कहे छ । अहिं मनुष्यना भवन विना आठ 2 द्वार कहे छे, तेमां स्थितिद्वार अने अवगाहना द्वार प्रथम कहे छे. गम्भनर तिपलियाऊ, तिगाउ उकोस ते जहन्नेणं ॥ मुच्छिप दुहावि अंतमुहु,अंगुल असंखभाग तण।।३८४॥३१॥ अर्थ-गब्भनर ) के० गर्भज मनुष्य उन्कृष्टथी ( तिपलि याऊ ) के त्रण पल्योपमना आयुष्यवाला जाणवा. अने (ते) के० ते गर्भज मनुष्य (उकोस ) के० उत्कृष्टथी ( तिगाउ ) के० त्रण गाउना देहमानवाला जाणवा. तथा ( जहन्नेणं ) के. जबन्यथी गर्भज मनुष्यनुं अने (मुच्छिम ) के० समूीम मनुष्यनु (दुहावि ) के० जयन्य अने उत्कृष्टथी ( अंतमुहु ) के० अंतर्मुहूतेनुं आयुष्य होय छे. तथो गर्भज मनुप्यनु जयन्यथी ( अंगुल असंखभाग तणू) के० अंगुलना असंख्यातमा भागनुं शरीर होय छे. ३८४ ॥ हो उसपात उध्वर्तना विरहकाल कहे छे. • वारस मुहुत्त गमे, इयरे चउवीस विरह उक्कोसो॥37 जम्ममरणेसु समओ,जहण्ण/संखा सुरसमाणा ॥३८५॥ ___ अर्थ-(गब्भे ) के० गर्भज मनुष्यने जन्म आश्रओं तथा मरण आश्री विरहकाल उत्कृष्टथी (बारस मुहुत्त ) के० बार मुहतनो होय छे. एटले एक गर्भज मनुष्य उपन्या पछी बीजो उत्कृटथी बार मुहूर्तने आंतरे उपजे. मरण पण एज प्रमाणे जाणवू.
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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