SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०७ आरे सारे मारे, कवे तपए य होइ नायवे ॥ खाडखडे खंडखडे, इंदयनिरया चउत्थीए ॥ ३४३ ॥ अर्थ-पहेलो (आरे) के० आर, बीजो (सारे ) के० सार, चीजो ( मारे) के० मार, चोथो (वो) के० वर्व, पांचमो (तमएय) के० तम, (होइ ) के छे. छठो (खाडखडे ) केखाडखड अने सातमो (खंडखडे ) के० (खण्ड खड) ए सात इंदयनिरया) के० इन्द्रक नरकावास ( चउत्थोए ) के० चोथी नरक पृथ्वीने विषे जाणवा. ॥ ३४३॥ खाए तमए य तहा, ऊसे अंधे य तहब तिमिसे य ॥ एए पंचमपुढयो, पंचयनीरइंदया हुंति ॥ ३४४ ॥ ५५ ___ अर्थ-हेलो (खाए) के० खात, वीजो (तमएय ) के० तमक, (तहा) के० तेमज त्रीजो (ऊसे) के० ऊस, चोथो (अंधेय) के० अन्ध, (तहय ) के० तेमज पांचमो (तिमिप्य ) के० तिमिस. (एए) के० ए नामना (पंचयनीरइंदया) के पांच इन्द्रक नरकावास (पंचमपुडयो) के. पांचमी नरकपृथ्वीने विषे (हुति) के० छे. १ ३४४ ॥ हिम वद्दल ललक्खे, तिनिउ नौरइंदया उ छट्ठीए॥ एको य सत्तमाए, अपइठाणा य बोधवो ॥ ३४५ ॥ ___ अर्थ-पहेलो ( हिम) के० हिम, बीजो ( बद्दल ) के० वदल, त्रीजो ( ललक्खे ) के० ललख, (तिनिउ) के० ए त्रण ( नीरइंदया ) के० इन्द्रक नरकावास (छठीए) के० छट्ठी नरकपृथ्वीने विषे छे. (य) के० अने (सतमाए ) के० सातमी नरकपृथ्वीने विषे
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy