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(संघट्टे) के० संघट्ट, सातमो (जिम्भे) के० जिभ अने आठमों ( अवजिप्भीर) के० अवजिप्भ (चेव) के० निश्चे होय-॥ ३३९ ।। नवमो (लोले) के० लोल, दशमो (लोलावत्ते) के० लोलावत, ( तहेव) के० तेमज अगोयारमो (घणलोलु एय) क० घणलोलुक (बोधव्ये) के० जाणवो. (बीयाए पुढवीए) के० वीजी नरकपृथ्वीना (एए) के० ए पूर्व कहेला ( इक्कारस ) के० अगीयार (इंदया) के इंद्रक नरकावास छे० ।। ३४० ॥ तत्तो तविआ तवणो, तावणो पंचमो निदिट्ठोय ॥ छ8ो पुण पज्जलिओ, उज्जलिओ सत्तमो
नीरओ ॥ ३४१ ॥ संजलिओ अट्ठमओ,संपज्जलिओयनवमओ भणि।। तइयाए पुढवीए, एए नव होति नीरइंदा ॥ ३४२ ॥ - अर्थ-पहेलो (तत्तो) के तप्त, बीजो (तविओ) के० तपिक, श्रीजो (तवणो) के० तपन, चोथो (तावणो) के० तापन, (य) के० अने (पंचमो ) के० पांचमो (निदिट्ठो) के. निदाघ, (पुण) के० वली (छट्ठो) के० छट्ठो (पज्जलिओ) के० प्रज्वलित, अने ( सत्तमो) के० सातमो (उज्जलिओ नीरओ) के० उज्वलित नरकावास. ॥ ३४१ ॥ (अट्ठमओ) के० आठमो (संजलिओ) के० संज्वलित, (य) के० अने (नवमओ) के० नवमो ( संपन्न लिओ) के० संप्रज्वलित (भणिो ) के० कयो छे. ( तइयाए पुढवीए ) के० त्रीजी नरक पृथ्वीना (एए) के० ए पूर्व कहेला (नव) के० नत्र (नोरइंदा) के० मोटा इन्द्रक नरकावास (होति) के छे. ॥ ३४२॥