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________________ अर्थ-( अत्थ) के हो पढमो) के० पहेलो (सीमंतयो. के० सीमन्त, (पुग ) के० वलो (बीओ) के बीजो (रोख्यत्ति) . के रोरुओ ( नाययो ) के० जागयो० ( तत्थय ) के० ते पहेली नरकमां ( तइओ) के० त्रीजो (रंगे ) के० रंभ, (पुण) के चली (चउत्थो) के० चोथो ( उज्झता) के० उज्जतनामनो ( होइ ) के० होय छे-॥ ३३६ ॥ (संभंतमसंभंतो) के० पांचमो संभ्रांत अने छठो असंभ्रांत, वली (सत्तमो) के० सातमो (विप्भंतो) के० विभ्रांत (चेव) के० निश्वे (नेओ) के० जाणवो. (पुग) के० वली ( अहमओ) के आठमो ( भत्तो ) के. भक्त अने ( नवमो) के० नवमो (सीउत्ति) के० शीतनामनो (नायवो) के० जाणवो-॥ ३३७ ॥ (वकंन मरकंतो) के० दशमो वक्रांत अने अगीयारमो अवक्रांत, बारमो (विकलो) के० विकल, (नह) के० तथा तेरमो ( रोरुओ निरओ) - रोरुक नामनो नरकावास (चेव ) के० निश्चे जाणतो. ( पढमाए पुढवीए) के० पहेली नरकपृथ्वीना (एए) के० ए पूर्वे कहेला (तेरस) के० (तेर नीरीदया ) के० मध्यना इंद्रक नरकावास कह्या-|| ३३८ ॥ थणीए थणकेय तहा,मणए चणके य दोइ नायवे ॥ घट्टे तह संघट्टे, जिम्भे अवजिप्भीए चेव ॥ ३३९ ॥ लोले लोलाववत्ते, तहेब घणलोलुए य बोधव्वे ॥ बीयाए पुढबीए, इक्कारस इंदया एए ॥ ३४०॥ ॥ अर्थ-पहेलो (थणीए ) के० स्तनिक, (तहा) के तथा बोजो (थणकेय) के स्तनकेत, त्रीजी ( मणए ) के० मणक, (य) के० अने चोथो (चणके ) के० चणक, ए (दोइ) के० बे (नायमे) के० जाणवा पांचमो (बट्टे) के० घट्ट, अने ( तह) के० तथा छट्ठो
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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