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हवे साते नरकना प्रतरोनी जूदी जूदी संख्या कहे छे. तेरिकारस नव सग, पण तिन्निग पयर सवि गुणवन्ना॥ सीमंताई अपइ-ठाणंता इंदया मञ्झे ॥ ३३५॥ २५०
अर्थ-पहेली नरक पृथ्वीमां (तेर ) के० तेर प्रतर, बीजीमां ( इक्कारस ) के० अगीयार, त्रीजीमां ( नव) के० नव, चोथीमां (सग) के० सात, पांचमीमां (पण) के० पांच, छठ्ठीमां (तिनि) के० त्रण,अने सातमीमां (इग) के० एक. ए (सव्वि) के० सर्वमली (गुणवन्ना ) के० ओगण पचास (पयर ) के० प्रतर जाणवा. ए सर्वे प्रतरना ( मज्झे ) के०. मध्ये (सीमंताई) के. सीमंतथी आरंभी ( अप्पइट्ठाणंता) के० अप्रतिष्ठान सुधी एटले पहेला प्रतरना मध्यमां सीमन्त नामनो अने ओगणपचासमा प्रतरमां अप्रतिष्ठान नामनो ( इंदया ) के० इन्द्रका एटले मुख्य नरकावास छे. ॥ ३३५॥
हवे साते नरकपृथ्वीना मली ओगणपचास प्रतरना मध्यभा: गना इंद्रक नरकवासनां नाम कहे छे. सीमन्तओत्थ पढमो, बीओ पुण रोख्यत्ति नायब्बो॥ रंभो तत्थय तइओ, चउत्थो पुण होइ उज्झंतो॥३३६॥ संभंतमसंभंतो, विभंतो चेव सत्तमो नेओ॥ अट्ठमओ भत्तो पुण, नवमो सीउत्ति नायबो॥३३७॥ वकंतमवकतो, विकलो तह चेव रोरुओ निरओ॥ पढमाए पुढवीए, तेरस नीरींदया एए । ३३८ ॥ ॥