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इत्यादिक कयु छे. तेटलं जाणवु एमां विरोध नथी ॥ ३३२ ॥
हवे प्रत्येक नरकपृथ्वीमां नरकावासानी संख्या कहे छे. तीस पणवीस पनरस, दस तिन्नि पणूण एगलक्खाई॥ पंच य नरया कमसो, चुलसी लक्खाइं सत्तसुवि ॥३३॥ - अर्थ-जे नारकी जीवोने उपजवाना स्थानको ते नरकावासा कहेवाय छे. ते पहेली नरकपृथ्वीमां (तीस) के० त्रीश लाख, बीजीमां (पणवीस) के० पचीश लाख, त्रीजीमां (पनरस ) के० पंदर लाख, चोथीमां. (दस) के० दश लाख, पांचमीमां (तिनि) के० त्रण लाख, छठीमां (पणूण एग लक्खाई) के० एक लाखमा पांच ओछा, अने सातमीमां (पंच य) के० फक्त पांच ( नरया) के० नरकाबासा (कमसो) के अनुक्रमें जाणवा. (सत्तसुवि) के० साते नरक पृथ्वीना एकठा करीये एटले (चुलसी लक्खाइं) के० चोरासी लाख नरकावासा थाय छे ॥ ३३३ ॥ ! ___ सातमी नरक पृथ्वीमां पांच नरकावासा क्या ? ते कहें छे. पुव्वेण होइ कालो,अवरेण अपइट्ठ ओ महाकालो ॥ रुदाहिगपासे, उत्तरपासे महारुरुं ।। ३३४ ॥२४
अर्थ-(अपइटिओ) के० मध्यमा रहेला अप्रतिष्ठान नोमना नरकावासथी (पुण) के० सातमी पृथ्वीमां पूर्व दिशाने विषे (कालो) के० कालनामनो नरकावास (होइ ) के० छे. (अवरेण) के० पश्चिम दिशामां (महकालो) के०. महाकाल नरकावास छे. (दाहिणपासे ) के० दक्षिण दिशामां (रुरो) के० रु रु नामनो नरकावास छे, अने (उत्तरपासे ) के उत्तर दिशामां (महारुरु) के० महारुरु नामनो नरकावास छे. ॥ ३३४ ॥