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(एको) के एक (अपइट्ठाणो) के० अप्रतिष्ठान नामनो नरकावास (बोधचो) के० जाणको ।। ३४५ ॥
हवे दरेकप्रतरे ए मध्यना इंद्रक नरकासाथो केटली श्रणिओ निकले छे ? तथा ते दरेक श्रेणिमां केटला नरकावासा छ ते कहे छे. तेहितो दिसि विदिसि,विणिग्गया अट्ठ निस्यआवलीया।। पढमपयरे दिसि गुण-वन विदिसासु अडयाला ।।३४६॥ २॥
अर्थ-प्रत्येक प्रतरे ( तेहिता ) के० ते मध्यना इंद्रक नरकावासोथी (सि.) वे० चारे दिशामां अने बिदिसि ) के० विदिशामां (अट्ठ निरयावलीया ) के० आठ नरक पंक्तिओ (विणिग्गया ) के० निकलेली छे. तेमा ( पढमपयरे ) के० पहेला प्रतरने विषे ( दिसि ) के चारे दिशामां चारे पंक्तिने विषे (उणवन्न) के० ओगणपचास अने ( विदिसासु ) के० विदिशामां (अडयाला) के० अडतालीस नरकावासा होय छे. ॥ ३४६ ॥ बीयाइसु पयरेसु, इग इग हीणा उ हुंति पंतीओ ॥२४ जा सत्तमीयपयरे, दिसि इक्किको विदिसि नत्थिा॥३४॥ ___ अर्थ-(बीयाइसु पयरेसु) के० बीजाथी आरंभीने जे प्रतर छे तेमां ( इग इग हीणाउ पतीओ) के दरेक प्रतरे एक एक नरकावासे ओछी पंक्तिओ ( हुंति) के० होय छे. जेथी ( जासत्तमी५पयरे ) के० सातमी नरक पृथ्वीना छेल्ला ओगणपचासमा प्रतरने विषे (दिसि ) के चारे दिशामां ( इकिको) के० एक एक, अने (विदिसि ) के० विदिसामा (नत्थि) के० एक पण नथी. ॥३४७॥