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________________ ... १८८ एकठा करतां बार योजन बे गाउ अने एक योजनना त्रण भाग करीये तेवा बे भाग. एटलो बीजी नरकपृथ्वीथी चारे दिशाये अलोक छे ॥ ३२६ ॥ जोयण सत्ततिभागुण, पंच एवं च वलयपरिमाणं ॥ बारस भागा अट्ठओ, तइयाए जहकमं नेयं ॥३२७ अर्थ-(एवं) के० एवीरीते ( तइयाए ) के० त्रीजी वालुका प्रभाना (वलयपरिमाणं) के० वलयनुं परिमाण ते (जहकम) के० अनुक्रमे करीने (नेयं ) के० जाणवू. तेमां घनोदधिवलयनुं परिमाण जोयण (सत्ततिभागुण ) के० छ योजन बे गाउ अने एक गाउना त्रण भाग करीये तेवा बे भाग अधिक एटलं जाणवू. घनवातनुं वलय (पंच) के० पांच योजननुं जाणवू. अने तनुवातनुं वलय एक योजन अने (बारस भागा अट्टओ) के० एक योजनना बार भाग करीये तेवा आठ भागनुं जाणवू. ए सर्व मलीने तेर योजन एक गाउ अने एक गाउना त्रण भाग करीये तेवो एक भाग उपर एटलो वालुकाप्रभाथकी चारे दिशाये अलोक छे. ॥ ३२७ ॥ सत्त सवाया पंचओ, पउणादो जोयणा चउत्थीए॥ घणउदहिमाइयाणं, वलयाणं माणमेयं तु ॥ ३२८ ॥ ___ अर्थ-(चउत्थीए ) के० चोथी पंकप्रभाना (घणउदहिमाइयागं ) के० घनोदधि विगेरेना (वलयाण) के० वलयोनुं (माणं) के० प्रमाण ( एयं ) के० आ आगल कहे छे ते प्रमाणे जाणवू. घनादधिनुं प्रमाण ( सत्त ) के० सात योजनुं घनवातनुं प्रमाण ( सवाया पंचओ ) के० सवापांच योजननु, अने तनुवातनुं प्रमाण (पउणा दो जोयणा) के० पोणा बे योजननु. सर्वमली पंकप्रभाथकी चउद योजन चारे दिशाये अलोक छे. ॥ ३२८ ॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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