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________________ १८७ उदही) के० घनोदधि, (घग) , घनवात अने ( तणुवायाण) के तनुवात ए त्रण वलयनी मध्ये (जहसंखं ) के० यथो संख्याये करीने ( सतिभाग गाऊयं ) के० घनोदधिमां एक गाउ, अने एक गानो त्रीजो भागधनात वलयमां (गाउयं) के एक गाउ, (च) के० अने (तह ) के० तेमज तनुवातमां (गाउय तिभागो) के० एक मानो त्रीजो भाग (खिविज ) के० नाखीये त्यारे बीजी शर्करामभानो वलयविष्कंभ ( होइ) के० होय छे, (एयं कोण) के• ए अनुक्रमे (बीयाए ) के० बाजी नरक पृथ्वोमां सर्वमली बार योजन, वे गाउ, अने एक गाउना। करोये तेव। ये भाग एटलो बोजी नरक पृथ्वीथी चारे दिशाये अलोक छ हो (तइयाइसु) के० वालुकाप्रभादि पांचे नरक पृथ्वीना वलयमां (तंपि) के० जे शर्करामभावलयमां नाखेलं तेने पण कमसो के० अनुक्रमे करीने (दुतिचउपचछंगुगं) के बे गुणु, त्रण गुणु, चार गुणु, पांच गुणु अने छ गुणु करीने (खिव) के० मेलववं एटले वालुकादिकना वलयनो विष्कंभ होय, ॥ ३२४ ॥ ३२५ ॥ छसतिभागा पउगाय-पंच वलयाण जोपणपमागं ॥ एगं बारसभागा, सत्त कमा बीय पुढवीए ॥ ३२६ ॥ ___ अर्थ-बाजी शर्कराप्रभाना (वलयाण ) के० वलयोनुं (जोयणपमाणं) के० योजनप्रमाण घनोदधिवलय (छ सति भागा) के० छ योजन अने एक योजननां त्रण भाग करीये तेवो एक भाग एटलं जाणवू, अने घनवातवलय (पउणा पंच ) के० पोणा पांच योजन- जाणवु. तथा तनुवातना वलयनुं प्रमाण (एगं) के० एक योजन अने (बारस भागा सत्त) के० एक योजनना बार भाग करीये तेवा सात भाग (कमा) के० अनुक्रमे करीने जाणवा. सर्व
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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