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________________ १८९ सतिभागसत्त तह अद्ध, छट्ठ वलयाणमाणमेयं तु ॥ जोयणमेगं बारस, भागा दस पंचमीई तहा ॥३२९॥२२ ___ अर्थ-( तहा ) के० तेमज (पंचमोई ) के० पांचमी धूमप्रभा पृथ्वीना (वलयाणमाणं) के० वलयोनुं प्रमाण ( एयं) के० आ प्रमाणे जाणवू. घनोदपिनुं प्रमाण ( सतिभागसत्त ) के० त्रीजा भागे सहित सात योजननु, ( तह ) के० तथा घनवातनुं प्रमाण (अद्व छह ) के० साडा पांच योजननु, अने तनुवातनुं प्रमाण (जोयणमेगं ) के० एक योजन अने एक योजनना ( बारस भागा दस ) के० एक योजनना बार भाग करीये तेवा दश भागर्नु, सर्व मली चौद योजन बे गाउ अने एक गाउना त्रण भाग करोये तेवा बे भाग एटलो धूमप्रभाथी चारे दिशाये अलोक छे. ॥३२९ ॥ अट्ठतिभागूणाई, पउणाई छच्च वलयपरिमाणं ॥ छट्ठीए जोयण तहा, बारस भागा य इक्कारा ॥३३०॥२४ ___ अर्थ-(सहा) के० तेमज (छठी ) के० छही तमप्रभा नरक पृथ्वीनां ( वलयपरिमाणं ) के० वलयोनुं प्रमाण आ प्रमाणे( अट्ठतिभागृणाई जोयण ) के० त्रीजे भागे ओछा आठ योजन एटले सात योजन बे गाउ तथा एक गाउना त्रण भाग करीये तेवा बे भाग एटलं घनोदधिनुं वलय प्रमाण जाणवू, तथा (पउणाई छच्च ) के० पोणा छ योजननुं धनवातनुं प्रमाण जाणवू. अने (बारस भागाय इक्कारा ) के० एक योजनना बार भाग करीये तेवा अगीयार भाग एटलं तनुपातन प्रमाण जाणवू. सर्व मला पंदर योजन एक गाउ अने एक गाउना त्रग भाग करीये तेवो एक भाग, एरलं तमममाथको चारे दिशाए अन्तर छे ॥ ३३०॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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