________________
१५७ लेश्या एवा वे भेद छे. आत्माने कृष्ण पीत विगेरे द्रव्यपुद्गल संयोग ते द्रव्यलेश्या, तथा शुभाशुभ परिणाम ते भावलेश्या. ए अधिकार आगल नारकीना अधिकारमा कहेशे. (भवणवण) के० भवनपति तथा व्यंतर देवताने ( पढम चउलेस ) के० पहेली चार एटले कृष्ण नोल कापोत अने तेजो ए चार लेश्या होय छे. त्यां परमाधामीने एक कृष्णलेश्यो होय छे, अने ( जोइसकपदुगे) के० ज्योतपो तथा पहेला बे देवलोकने विषे (नेऊ) के० तेजोलेश्या होय छे. ॥ २७२ ॥ ते उपरना ( कपतिय ) के० सनत्कुमार माहेंद्र अने ब्रह्म ए त्रण देवलोकने विषे ( पम्ह लेसा ) के० एक पद्मलल्या होय छे. तथा (लंताइसु ) के० लांतक देवलोकथी आरंभी उसरना सर्व लोकने विषे ( सुरा) के० देवता ( सुकलेस ) के०. शुक्ललेश्यावाला (हुति ) के० होय छे. ___ भवनपति व्यंतर अने ज्योतषी देवोना शरीरनो वर्ण प्रथम देवोना अधिकारमा कया छे. अहिं वैमानिक देवोना शरीरनो वर्ण अझै गाथाथी कहे छे. कणगाभ पउमकेसर-चन्ना दुसुतिसु उवरि धाला॥२७३॥
अर्थ-सौधर्म अने ईशान ए ( दुसु ) के देवलोकमां देवतानां शरीर (कणगाभ) के० राता सुवर्ण समान कांतिवाला जाणवा. तथा सनत्कुमार माहेंद्र अने ब्रह्म ए (तिसु ) के० ग देवलोकना देवतानां शरीर ( पउमकेसर वन्ना ) के० कमलना केसाना जेवा वर्णवाला जागवा. अने ( उवरि ) के० ते उपरना सर्व देवलोकना देवतानां शरीर (घवला ) के० उज्वल वर्णवाला जाणवा. ॥ २७३ ॥
हो देवताना आहारनुं तथा श्वासोश्वासनुं स्वरूप कडे छे.