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१५६ अर्थ-(किण्हा नीला काऊ) के० कृष्णलेश्या, नीललेश्या अने कापोतलेश्या, (तिनिवि फासोय ) के० ए त्रणे लेश्यानो पण स्पर्श [ अप्पसस्थाओ के माठो जाणवो. जेवो( गोजिप्भ कावय ) के० गायनी जिभ अने करवत, ( तओ) के तेथी ( अणंनगुगो ) के० अनंतगुणो ( फासो ) के ए त्रणे लेश्यानो समर्श [ होइ ] के० होय छे. ॥ ॥ तेऊ पम्हा सुक्का पसत्थलेसाओ एरिसो फासो ॥ बुरनवणीयसिरीसो, णंतगुणो होइ तत्तोवि ॥ २७१ ॥ ___ अर्थ-(तेऊ पम्हा सुका ) के तेजोलेश्या, पद्मलेश्या अने शुक्ललेश्या, ए त्रण सारी लेश्या छे. तेनेा ( एरिसो फासो ) के० एवो स्पर्श होय छे. केवो होय छे! ता के० ( बुरनवणीयसो) के० बूग्नामनी वनस्पति तथा माखण अने शिरीषना फुल सरखी जे स्पर्श छे. ( तत्तोवि ) के० तेनाथी पण ए त्रण लेश्यानो ( अणंतगुणो ) के० अनंतगुणो श्रेष्ठ स्पर्श ('होइ.)क० छे. ॥२७॥
हवे देवताने कइ कइ लेश्या होय ? ते दोह गोथाथी कहे छे. किण्णा नीला काऊ, तेऊ पम्हा य सुकलेसाओ॥ भवणवण पढमचउलेस, जोइसकप्पदुगे तेऊ.॥२७२ ॥१॥ कष्पतिय पम्हलेसा, लंनाइसु सुक्कलेस हुँति सुरा ॥१४० ____ अर्थ-(किण्हा ) के० कृष्णलेश्या, (नीला ) के० नीललश्या, ( काऊ) के० कापोतलेश्या, ( तेऊ ) के तेजोलेश्या, (पम्हा ) के० पद्मलेश्या, य के० अने ( सुक्क) के० शुक्ललेश्या. ए छ (लेस्साओ) के० लेश्या जाणवी. जीव तथा कमनो जेणे करी संबंध थाय ते लेश्या कहेवाय छे. तेना द्रव्यलेश्या अने भाव