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________________ १५५ ( एत्तोवि ) के० एनाथी पण ( अांतगुणो ) के ० अनंतगुणो (रसो) के० मीष्टरस ( तेऊए ) के० तेजोलेश्यानो ( नामहो ) के० जाणवो ॥ २६७ ॥ पहाए एरिसरसो, वरवारुणि आसवाण जारिसओ ॥ महुमेरगस्सब रसो, तत्तोविय होइ पंतगुणो ॥ २६८ ॥ अर्थ - ( पहाए ) के० पद्मलेश्यानो (एरिसरसो) के० एवो रस छे. केव ? ते कहे छे. ( वरवारुणि) के० श्रेष्ठ मदिरानो तथा ( आसवाण ) के० विविध आसवानो ( जारिसओ) के० रस होय . वली (महुमेरगस्सव रसो) के० मघ तथा मैरेमदिरानो जेवो रस छे, (तत्तोत्रिय ) तेनाथी पण (पंतगुंगा) के० अनंतगुणो ( पद्मलेश्यानो रस होइ) के ० होय. ।। २६८ ।। खज्जूर मुदीयरसो, खीररसो खंडसकररसो वा ॥ एत्तोवि अनंतगुणो, रसो सुक्काओ नावो ॥ २६९ ॥ अर्थ - जेवो [ खज्जूरमुदीयरसो ] के० खजूर अने द्राखनो रसं होय, तेमज जेवो ( खीररसो के० दुधनो रस होय, वा के० अथवा जेवr (खंडसकररसो) के० खांड अने साकरनो रस होय, ( एत्तो वि ) के० एनाथी पण (अनंतगुण) के० अनंतगुणा (रसो) के० मीठो रस ( सुकाओ) के० शुक्कलेश्यानो ( नायन्त्रो ) के० जाणो ॥ २६९ ॥ हवे लेश्यानो स्पर्श केवो होय ? ते कहे छे. किण्हा न ला काऊ, तिन्निवि फासो य अप्पसत्थाओ || गोजिभकरवय तओ, तगुणा होइ फासो य ॥ २७० ॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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