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________________ १५४ रस (कव्हाए) के० कृष्ण लेश्याना (नायवो) के० जाणो ॥ २६४ || जह तियगडस्स य रसो, तिक्खो जह हत्थिपीप्पलीए य ॥ एत्तोव य णंतगुणो, रसो उ नीललेस्साए ॥ २६५ ॥ अर्थ - ( जह ) के० जेवो ( नियगडस्स) रसो के० मुंड पोंपर अने मरीरूप त्रिकटुना ( तिक्खो ) के० तीखो रस होय, ( जह ) के० जेवो ( हत्थिपीप्पलीए ) के० गजपीपरनेा तीखो रस होय. एतोषि) के० एथी पण ( अनंतगुणो ) के अनंतगुणो ( रसो) के० तीखो ( नीललेस्साए ) के० नीललेश्याना जाणवो. ॥ २६५ ॥ कच्चस्स वावि जाव रसो | जह तरुण चूयरसो, कवि एतावि अनंतगुणो, रसो य काओय लेसाओ || २६६ || अर्थ - (जह ) के० ( तरुणचूयरसो) के० काचा आंबाना फलना रस होय, (वावि ) के० अथवा पण ( कवि कच्चास) के० ० काचा कोठ फलनो ( जाब रसो) के० जेवो रस होय, (एतोव) के० एनाथी पण ( अनंतगुणो ) के० अनंतगुणा ) के० अनं तगुणा ( रसो) के० कषायलेा रस ( काओय ) लेसाओ ) के० कापोत लेश्याना जाणवो. ॥ २६६ ॥ जह परिणयअंबरसो, पक्ककविट्ठस्स वावि जारिसओ | एत्तोवि अनंतगुणो, रसोय तेऊए नायवो ॥ २६७ ॥ अर्थ - ( जह ) के० जेवो ( परिणय अंबरसो ) के० पाकेला आंबाना फलना रस होय, (वावि ) के० अथवा ( पक्कक विट्ठस्स ) के० पाकेला क फलना ( जारिसओ) के ० जेवो रस होय.
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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