SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४९ ताओ सणंकुमारा-नेवं वटुंति पलियदसगेहिं ॥ १ . जा बंभ सुक्क आणय, आरण देवाण पन्नासा ॥२५३॥ ईसाणे चउ लक्खा,साहिय पलियाइ समय अहिअठिइ ।। जा पनर पलिय जासिं, ताओ माहिंद देवाण।।२५४॥ एएण कमेण भवे, समयाहिय पलिय दसगवुढोए ॥ लंतसहसारपाणय, अच्चुअ देवाण पणपन्ना ॥२५५॥१४ ___ अर्थ-( सोहम्मे ) के० सौधर्म देवलोकने विषे [ अपरिग्गह देवीणं ] के० अपरिग्रहिता देवीओना ( विमाण ) के० विमान ते (छ लक्खा) के० छ लाख (हुति ) के० छे. तेमां जे देवीओनुं एक पल्योपमर्नु पूर्ण आयुष्य छे. ते देवीओसौधर्म देवलोकवासी देवताने भोग योग्य जाणवी. अने ( जासिं ) के० जे देवी ओगें (ठिइ) 0 आयुष्य (पलियाई समयाहिय) के० एक पल्यापमथी आरंभी समय समय अधिक वधतां (जाव दसपलिया) के० दश पल्यावमनुं आयुष्य होय ॥२५२॥ (ताओ) क० ते देवीओ ( सणंकुमारा) के० सनत्कुमार देवताने भोग योग्य जाणवी, पण उपरना देवताने (न) के० भोग योग्य नथी. ( एवं ) के० वली एज... प्रमाणे ( पलियदसगेहिं ) के० दश पल्यापमथी एक एक समय (वट्ठति ) के० वधारतां (जा) के० जेटलामां वीशपल्यापमर्नु आयुष्य पूर्ण थाय तेटला आयुष्यवाली देवीओ (बंभ ) के० ब्रह्मदेव लोकना देवताने भाग योग्य जाणवी. त्यार पछी समय समय वधारता त्रीशपल्योपम थाय तेटला आयुष्यवाली देवीओ (शुक्र) के०शुक्र देवलोकना देवताने भोग योग्य जाणवी. त्यार पछी समय समय वधारता ज्यांसुधीमा चालीश पल्पोयम थाय. तेटला आयुष्य
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy