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________________ १५० वाली देवीओ (आणय) के आनत देवलोकना देवताने भाग योग्य जाणवी. त्यार पछी समय समय वधारता जेटलामां ( पन्नोसा) के० पचास पल्यापम थाय तेटला आयुष्यवाली देवीओ ( आरग देवाण) के० आरण देवलोकना देवताने भाग योग्य जाणवी ॥ २५३ ॥ ( ईसाणे ) के० ईशान देवलोकमां अपरिग्रहिता देवी ओना (चउ लकवा ) के० चार लाख विमान छे. तेमां ( साहिय पलियाइ ) के० जे देवीओनुं साधिक एक पल्यापमनुं आयुष्य छे ते ईशान देवलोकना देवतानेज भाग योग्य जाणवी. त्यार पछी (समय अहिय ) के० समय समय अधिक वधारतां (जासिं ) के०जे देवीओर्नु ( जा पनर पालय टिइ) के० ज्यां सुधी पनर पल्योपमनी आयुष्य स्थिति थाय, ( ताओ ) के० तेटला आयुष्यवाली देवीओ (माहिंद देवाणं ) के० माहेंद्र देवलोकना देवताओने भीग योग्य जाणवी ॥ २५४ ॥ ( एएण कमेण ) के० ए अनुक्रमे करीने ( समयाहियपलियदसगवुट्ठीए) के० एक एक समयथी आरंभीने दश दश पल्यापमनी वृद्धि ( भवे ) के० होय. जेथी पञ्चीस पल्योपम सुधीना आयुष्यवाली देवीओ ( लंत ) के० लांतक देवलो. कना देवताने भोग योग्य जाणवी. पांत्रीश पल्यापम सुधीना आयुष्यवाली देवीओ ( सहस्सार ) के० सहस्रार देवलोकना देवताओने भोग योग्य जाणवी. पोस्तालोश पल्यापम सुधीना आयुष्यवाली देवीओ (पाणय ) के० प्राणत देवलोकना देवताने भाग योग्य जाणवी. अने (पणपन्ना ) के० पंचावन पल्यापम सुधीना आयुष्यवाली देवीओ ( अच्चुअदेवाण ) के० अच्युत देवलोकना देवताने भाग योग्य जाणवी. ॥ २५५ ॥ हवे छ लेश्यानु स्वरूप तथा देवताने केटलो लेश्या होय ते कहछे.
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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