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________________ १३७ के० तरस अथवा भूखना दुःखथी मरनारा, अने (गिरिसिरपडगाउ मुया) के० पर्वतना शिखरउपरथी पडीने मरनारा जीवो (सुहभावा) के० जो शूलपाणीनी पेठे शुभ भावथी मरे तो (वंतरिया हुंति ) के० व्यंतर देवता थाय छे. ॥ २२७ ॥ तावस जा जोइसिपा, चरगपरिवाय बंभलोगो जा॥ जा सहसारो पंचिंदि-तिरिय जो अनुओसट्टा ॥२२८ - १५ ___ अर्थ-( तावस ) के० कंदमूलनुं भक्षण करनारा वनवासी तपस्वीओ मरीने (जा जोइसिया ) के० भुवनपतिथी आरंभी ज्योतषी देवता सुधी जाय. तथा चरगपरिवाय) के० चार पांच भेगा थई भिक्षा मागे ते चरक अने कपिलमति परिव्राजक त्रिदंडिया ते मरीने (बंभलोगो जा) के० भुवनपतिथी आरंभी उत्कृष्टा ब्रह्मदेव लोक सुधी जाय. तथा (पंचिंदितिरिय ) के० गर्भज पर्याप्ता पंचेंद्रिय तिर्यंच ते हाथी बलद विगेरे जीवो कंबल सबलनी पेठे सम्यक्त्व देशावरति सहित मरीने उत्कृष्टथी ( जा सहसारो) के० सहस्रार देवलोक सुधी जाय अने ( सट्ठा ) के० श्रावक मनुष्य मरीने उत्कृष्टथी (जा अच्चुओ) के० बारमा अच्युत देवलोक सुधी जाय ॥ २२८ ॥ जइलिंग मिच्छदिट्ठी, गेविज्जा जाव जंति उक्कोसं ॥ १. पयमवि असदहतो, सुतत्थं मिच्छदिछीओ ॥ २२९ ॥ अर्थ (जइलिंग मिच्छदिट्ठी ) के० साधुना वेषने धारण करनारो मिथ्यादृष्टि जीव क्रियाना बलेकरी अंगारमर्दकाचार्यनी पेठे (उकोसं ) के० उत्कृष्टथी (गेविज्जा जाव जंति ) के० नवग्रेवेयक सुधी उत्पन्न थाय. वली ते मिथ्यादृष्टि कोने कहेवाय
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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