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१३८ तो के जे (सुतत्थं ) के० सुत्र तथा अर्थना ( पयमवि ) के एक पदने पण (असतो ) के० सद्दहे नहीं तो ते (मिच्छदिट्टीओ)। के० मिथ्या दृष्टि जाणवो. ॥ २२९ ॥ अहिं सूत्रनुं लक्षण कहे छ. . सुत गगहररइयं, तहेव पत्तेयबुद्धरइयं च ॥ मुयकेवलिणा रइयं, अभिन्नदसपुविणा रइयं ॥२३०।। १९८ ___ अर्थ-( गगहररइयं ) के० सौधर्म स्वामी प्रमुख गणधरनां रखेला आचारांगादिक, ( तठेव ) के० तेमज (पत्तेयबुद्धरइयं ) के० नेमिराजा विगेरे प्रत्येक बुद्धना रचेला नेमिप्रव्रज्यादिक, वली (मुक्केवलिणारइयं ) के० चउद पूर्वधर श्रुतकेवली शय्यंभवसरि प्रमुखनां रचेलां दश. कालिकादिक, अने ( अभिन्नदसपुविणा रइयं ) के० संपूर्ण दश पूर्वधरनां रचेलां ग्रंथा ते सर्व (मुत्तं ) के० मूत्र कहेवाय ॥ २३० ॥ अत्यं भासइ अरिहा, सुतं गुत्थंति गणहरा निउणा ॥ सासगस्स हियट्ठाए, तओ सुतं पवत्तइ ॥ २३१ ।।
अर्थ-( अरिहा ) के० अरिहंत प्रभु ( अत्यं ) के० अर्थने कहे. ते अरथी (निउगा ) के चतुर एवा (गगहरा) के० गणघरो (सुत्तं ) के० मूत्रने (गुत्थंति ) के गुंथे छे. (तओ) के० त्यार पछी ( सासणस हियट्ठाए ) के० शासन हितार्थे ( सुत्तं पवत्तइ ) के० मूत्र प्रवर्ते ॥ २३१ ॥ ... पयमक्खरंपि एगं, जो नवि रोएइ मुत्तनिद्दिष्टुं ॥ सेसं रोयइ अब, मिच्छादिट्ठी मुणेय वो ॥२३२॥१६
अर्थ-जो के० जेने ( मुत्तनिहिट ) के० मूत्रमां कहेलु