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________________ जंति समुच्छिमतिरिया, भवणवणेमु न जोइमाईसु ।। जं तेसिं उववाओ, पलियासंखंसआऊसु ॥ २२५ ॥१५॥ ___अर्थ-( समुच्छिमतिरिया) के० समूच्छिमतिर्यंच मरीने (भवणवणेसु ) के० भवनपतिने विषे तथा व्यंतरने विो (जंति) के० जाय छे, पण (जोइमाईसु) के० ज्योतषी विगेरेमां (न) के० न जाय. ( जं) के० कारणके (तेसिं) के० ते समूच्छिमतिर्थच उत्कृष्टथी (पलियासंखंसआउसु) के० पल्योपमना असंख्यातमा भागना आयुष्यवाला देवतामांज ( उपवाओ) के० उपजे छे, पग तेथी वधारे आयुष्य वालामां उपजे नहीं. ॥ २२५ ॥ ___हवे अध्यवसाय विशेषे गतिर्नु तरतमपणुं कहे छे. बालतवे पडिबद्धा, उक्कडरोसा तवेण गारविया ॥ वेरेण य पडिबद्धा, मरि असुरेसु जायंति ॥२२६॥१६० __अर्थ-(वालतवे) के० अज्ञानतपने विषे (पडिबद्धा) के आसक्त थयेला, (उक्कडरोसा) के० उत्कृष्ट रोष धरनारा, (तबेण गारविया) के तपथी अहंकार करनारा, (य) के० अने (रेण पडिबद्धा) के० वैरथी प्रतिबंध करनारा एवा जीयो (मरिउं) के० मृत्यु पामीने (असुरेसु जायंति) के० असुरकुमारमा उपजे छे. ॥ २२६ ॥ रज्जुग्गह वीसभक्खण,जलजलणपवेस तण्हहदुहओ॥ गिरिसिरपडणाउ मुया, सुहभावा हुंति वंतरिया ॥२२७।१९१ ___ अर्थ-( रज्जुग्गह ) के० गले दोरडानो फांसो खाई मरनारा, (वीसभक्षण ) के० विष खोइ मरनारा, (जलजलणावेस) के० पाणि अथवा अग्निमां प्रवेशकरी मरनारा, ( तण्हछुहहओदु)
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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