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________________ वानो विरहकाल ( उक्कोसा ) के० उत्कृष्टथी ( पारस मुहुत्त ) के० बार मुहूर्त्तनो जाणवो. त्यार पछी अवश्य उपजे. पंचसंग्रह ग्रन्थमां कयु छ के-गर्भज तिर्यंच मनुष्य देवता अने नारकी ए चारेने उत्कृष्टथी उपपात विरहकाल बार मुहर्तनो,(संमूच्छिम मनुष्यने चोवीश मुहूर्तनो भने विकलेंद्रिय तथा संमूर्छिम जीवोने अंतर मुहर्तना होय छे. ( अह) के० हवे भवणाईसु के० भवनाति विगैरे चारे निकायने विषे ( पतेयं ) के० प्रत्येकनुं विरहकालनु प्रमाण कहे छे. ॥ २१८ ॥ भवण वण जोइ सोहम्मी-साणेसु मुहुत्त चउवीसं ॥ ११ तो नव दिण वीस मुहू,बारस दिण दस मुहुत्ता य ।२१९॥ बावीस सढ दियहा,पणयाल असीइ दिण सयं तत्तो ॥ संखिज्जा दुसुमासा,दुसु वासा तिसु तिगेसु कमा॥२२०॥ वासाण सयसहस्सार,लक्ख तह चउसु विजयमाईसु॥ पलिया असंखभागो, सबढे संखभागो य ॥ २२१ ॥ . अर्थ-(भवण वण जोइ सोहम्मीसाणेमु ) के० भुवनपति, व्यंतर, ज्योतषी, सौधर्म अने ईशानवासी देवताने प्रत्येके (मुहुत्त चउ वीसं ) के० चोवीस मुहूत्तनो उत्कृष्टथी उपजवानो विरहकाल छे. (तो) के० त्यार पछी बीजो देवता उपजे. सनत्कुमार देवलोके (नव दिण वीस मुहू ) के० ना दिवस अने वीश मुहूर्त, माहेंद्र देवलोके ( वारस दिण दस मुहुत्ताय ) के० बार दिवस अने दश मुहूर्त ॥ २१९ ॥ ब्रह्म देवलोके [बावीस सढदियहा ] के० साडा वावीस दिवस. लांतक देवलोके (पणयाल ) के० पिस्तालीश दिवस. शुक्र देवलोके ( असीइ ) के० एंशी दिवस, सहस्रार देवलोके
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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